शुक्रवार, 13 जून 2014

गौण ही है पर यही है बताने के लिये आज भी

उसके चेहरे पर
शिकन नहीं है
सुना है उसकी
शोध छात्रा ने
शिकायत की है
छेड़ छाड़ की

अच्छे दिन
लाने वाले लोगों
को वैसे भी
देश देखना है
ये बातें तो
छोटे लोग
करते हैं तेरे जैसे

कोई हल्ला गुल्ला
जब नहीं है कहीं
कोई एफ आई आर
नहीं है कोई कहीं
कोई सबूत नहीं है

फिर अगर कोई
खुले आम बिना
किसी झिझक
मुस्कुराते हुऐ
घूमता है तो
तेरे को काहे
चिढ़ लग रही है

लड़के लड़कियाँ
परीक्षा दें या
मोमबत्तियाँ लेकर
शहर की गलियों में
शोर करने निकल पड़े
निर्भया होने से
तो बच ही गई है

वैसे भी जब तक
कोई अपराध
सिद्ध नहीं
हो जाता है
अपराध कहाँ
और कब
माना जाता है

और  अगर
घर की बात
घर में रहे तो
अच्छा होता है

‘उलूक’
तुझे तो
इस सब
के बारे में
सोच कर ही
झुर झुरी
हो जाया
करती है

उनको पता
चल गया
तू सोच रहा है
तो बबाल
हो जायेगा

उसने किया है
तो होने दे
बड़े आदमी
के बड़े हाथ
और सारे
आस पास के
बड़े लोग
उसके साथ

तू अपनी
गुड़ गुड़ी
खुशी से
यहाँ छाप
सिर खुजा
और उसको
मौज करते हुऐ
रोज का रोज
देखता जा
फाल्तू की
अपनी बात
उलूक टाइम्स में
ला ला कर सजा ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-06-2014) को "इंतज़ार का ज़ायका" (चर्चा मंच-1643) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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