भ्रम कहूँ
या
कनफ्यूजन
जो
अच्छा लगे
वो
मान लो
पर हैंं
और
बहुत हैंं
क्यों हैंं
अगर पता
होता तो
फिर
ये बात
ही कहाँ
उठती
बहुत सा
कहा
और
लिखा
सामने से
आता है
और
बहुत
करीने से
सजाया
जाता है
पता कहाँ
चलता है
किसी और
को भी है
या नहीं है
उतना ही
जितना
मुझे है
और मान
लेने में
कोई शर्म
या झिझक
भी नहीं है
जरा सा
भी नहीं
पत्थरों के
बीच का
एक पत्थर
कंकणों
में से एक
कंकण
या
फिर रेत
का ही
एक कण
जल की
एक बूँद
हवा में
मिली हुई
हवा
जंगल में
एक पेड़
या
सब से
अलग
आदमियों
के बीच
का ही
एक आदमी
सब आदमी
एक से आदमी
या
आदमियों के
बीच का
पर एक
अलग
सा आदमी
कितना पत्थर
कितनी रेत
कितनी हवा
कितना पानी
कितने जंगल
कितने आदमी
कहाँ से
कहाँ तक
किस से
किस के लिये
रेत में पत्थर
पानी में हवा
जंगल में आदमी
या
आदमीं में जँगल
सब गडमगड
सबके अंदर
बहुत अंदर तक
बहुत तीखा
मीठा नशीला
बहुत जहरीला
शांत पर तूफानी
कुछ भी कहीं भी
कम ज्यादा
कितना भी
बाहर नहीं
छलकता
छलकता
भी है तो
इतना भी नहीं
कि साफ
साफ दिखता है
कुछ और
बात कर
लेते हैं चलो
किसी को
कुछ इस
तरह से
बताने से भी
बहुत बढ़ता है
बहुत है
मुझे है
और किसी
को है
पता नहीं
है या नहीं
भ्रम कहूँ
या
कनफ्यूजन
जो
अच्छा लगे
वो
मान लो
पर है
और
बहुत है ।
या
कनफ्यूजन
जो
अच्छा लगे
वो
मान लो
पर हैंं
और
बहुत हैंं
क्यों हैंं
अगर पता
होता तो
फिर
ये बात
ही कहाँ
उठती
बहुत सा
कहा
और
लिखा
सामने से
आता है
और
बहुत
करीने से
सजाया
जाता है
पता कहाँ
चलता है
किसी और
को भी है
या नहीं है
उतना ही
जितना
मुझे है
और मान
लेने में
कोई शर्म
या झिझक
भी नहीं है
जरा सा
भी नहीं
पत्थरों के
बीच का
एक पत्थर
कंकणों
में से एक
कंकण
या
फिर रेत
का ही
एक कण
जल की
एक बूँद
हवा में
मिली हुई
हवा
जंगल में
एक पेड़
या
सब से
अलग
आदमियों
के बीच
का ही
एक आदमी
सब आदमी
एक से आदमी
या
आदमियों के
बीच का
पर एक
अलग
सा आदमी
कितना पत्थर
कितनी रेत
कितनी हवा
कितना पानी
कितने जंगल
कितने आदमी
कहाँ से
कहाँ तक
किस से
किस के लिये
रेत में पत्थर
पानी में हवा
जंगल में आदमी
या
आदमीं में जँगल
सब गडमगड
सबके अंदर
बहुत अंदर तक
बहुत तीखा
मीठा नशीला
बहुत जहरीला
शांत पर तूफानी
कुछ भी कहीं भी
कम ज्यादा
कितना भी
बाहर नहीं
छलकता
छलकता
भी है तो
इतना भी नहीं
कि साफ
साफ दिखता है
कुछ और
बात कर
लेते हैं चलो
किसी को
कुछ इस
तरह से
बताने से भी
बहुत बढ़ता है
बहुत है
मुझे है
और किसी
को है
पता नहीं
है या नहीं
भ्रम कहूँ
या
कनफ्यूजन
जो
अच्छा लगे
वो
मान लो
पर है
और
बहुत है ।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआभार रविकर जी ।
हटाएंवाह..सच में आजकल सब कनफ्यूजन है...बहुत गहन चिंतन...
जवाब देंहटाएंआभार कैलाश जी ।
हटाएंट्रेन छुट रहीं है छुक-छुक और उसने धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ली बेहतरीन |
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार भाई जी-
आभारी हूँ ।
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर ..
जवाब देंहटाएंआभार नीरज ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार प्रतिभा जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार अनुषा ।
हटाएंरेत में पत्थर
जवाब देंहटाएंपानी में हवा
जंगल में आदमी
या आदमीं में जँगल
सब गडमगड
सबके अंदर
बढ़िया है प्रस्तुति।
आभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार संजय ।
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