गुरुवार, 19 जून 2014

‘सात सौंवा पन्ना’

पता नहीं चला
होते होते
कब हो गये

एक दो करते
सात सौ
करीने से
लगे हुऐ पन्ने

एक के
बाद एक
बहुत सी
बिखरी
दास्तानों के

अपने ही
बही खातों
से लाकर
यहाँ बिखराते
बिखराते

बिखरे
या सम्भले
किसे मालूम
पर कारवाँ बन
गया एक जरूर

सलीके दार
पन्नों का
सुबह से
शुरु हुआ
बिना थके
चलने में
लगा हुआ

शाम ढलने
की चिंता
को कहीं
मीलों पीछे
छोड़कर

जिंदगी
की किताबों
के पुस्तकालय
में पड़ी हुई
धूल भरी
बिखरी हुई
किताबों के
जखीरे
बनाता हुआ

जिसे कभी
जरूरत
नहीं पड़ेगी
पलटने की
खुद तुझे ‘उलूक’

जिसे
अभी मीलों
चलना है
बहुत कुछ
बिखरते हुऐ
को यहाँ ला कर
बिखेरने के लिये

कल परसों
और बरसों
यहाँ इस
जगह पर
सात सौ से
सात हजार के
सफर में
बस इस
उम्मीद
के साथ
कि बहुत
कुछ बदलेगा
बहुतों के लिये

और बहुत कुछ
बिखरेगा भी
तेरे यहाँ ला कर
बिखेरने के लिये ।

20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई सुशील जी
    ढेरो बधाइयाँ 700 वीं पोस्ट के लिये....
    आपकी लिखी रचना शनिवार 21 जून 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत बधाई, आपके कारण हम कुछ सीख जायेंगे आशा है पढ़ना आंदोलित करता है |

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    1. जानू जी साथ साथ सीखते हैं मैं भी अभी सीख ही रहा हूँ आभार आपकी टिप्प्णी के लिये ।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    बधायी हो उलूक टाइम्स को और आपको 700वें पन्ने की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-06-2014) को "ख्वाहिश .... रचना - रच ना" (चर्चा मंच 1650) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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    उत्तर
    1. आभार आदरणीय शास्त्री जी आपके दिये हौसले का असर है ।

      हटाएं
  4. 700 वीं पोस्ट के लिये ढेरो बधाइयाँ सुशील जी

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  5. 700वीं पोस्ट हेतु बहत-बहुत हार्दिक बधाई!

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  6. बहुत ही सुन्दर, ७०० वीं रचना के लिए बधाई आपको\

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  7. बेहतरीन रचना
    बधाई हो आपको

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