शनिवार, 15 नवंबर 2014

कोई नई बात नहीं है बात बात में उठती ही है बात

बड़ी असमंजस है
मुँह से निकली
नहीं बात
बात उठना
शुरु हो जाती है
मायने निकलने की
और मायने
निकालने की
बात की तह में
पहुँचने की
बात को बात की
जगह पर पहुँचाने
की छिड़ ही
जाती है बहस भी
खुद की खुद से ही
नहीं तो सामने
आने वाले किसी
भी शख्स से
अब ढपली
जब सबकी अपनी
अपनी अपनी
जगह पर ही
होती है बजनी
तो राग किसी का
कौन काहे लेना
चाहेगा उधार
नकद में
बिना सूद का
जब पड़ा हुआ हो
सबके पास अपना
अपना कारोबार
कल मित्र के
समझने समझाने
पर कह बैठा
घर पर जब
यूँ ही एक बात
चढ़ बैठे
समझाने वाले
बातों का हंटर
उठाये अपने
अपने हाथ
काहे समझाना
चाहते हो
सब कुछ सब को
जितना ना आये
समझ में उतना
रहता है चैन
क्यों सब को
बनाना चाहते हो
अपना जैसा
समझदार और बैचेन
बात को उठा देने
के बाद बात को
उठने क्यों नहीं देते
जन धन योजना
की तरह
बिना पैसे के खाते
और उसपर मिलने
वाले एक लाख
रुपिये के
दुर्घटना बीमा से
अपनी और अपनी
सात पुश्तों का
भविष्य सुरक्षित
क्यों नहीं कर लेते
अब बात उठी है
समझी किसने है
सब खुश है
और हैं खुशहाल
और आप लगे हुऐ हैं
समझाने में
क्यों करना चाहते है
सबको बस एक बात
के लिये बेहाल
खुश रहने का मंत्र
गाँठ बांध लीजिये
जनाब
बात सुनिये
बात करिये
बात लिख
भी लिजिये
कोई नहीं
रोक रहा है
बात समझने
समझाने की
बात मत करिये
बस इसी बात
से ही होना शुरु
होता है बबाल ।

चित्र साभार: teacherzilla.wordpress.com

5 टिप्‍पणियां:

  1. बाल की खाल उधेड़ना कुछ लोगों का शगल होता है ..
    बहुत बढ़िया

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (17-11-2014) को "वक़्त की नफ़ासत" {चर्चामंच अंक-1800} पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं