सोमवार, 17 नवंबर 2014

खुद का आईना है खुद ही देख रहा हूँ

अपने आईने
को अपने
हाथ में लेकर
घूम रहा हूँ

परेशान होने
की जरूरत
नहीं है
खुद अपना
ही चेहरा
ढूँढ रहा हूँ

तुम्हारे
पास होगा
तुम्हारा आईना
तुमसे अपने
आईने में कुछ
ढूँढने के लिये
नहीं बोल रहा हूँ

कौन क्या
देखता है जब
अपने आईने में
अपने को देखता है

मैंने कब कहा
मैं भी झूठ
नहीं बोल रहा हूँ

खयाल में नहीं
आ रहा है
अक्स अपना ही
जब से बैठा हूँ
लिखने की
सोचकर

उसके आईने में
खुद को देखकर
उसके बारे में
ही सोच रहा हूँ

सब अपने
आईने में
अपने को
देखते हैं

मैं अपने आईने
को देख रहा हूँ

उसने देखा हो
शायद मेरे
आईने में कुछ

मैं
उसपर पड़ी
हुई धूल में
जब से
देख रहा हूँ

कुछ ऐसा
और
कुछ वैसा
जैसा ही
देख रहा हूँ ।

चित्र साभार: vgmirrors.blogspot.com

1 टिप्पणी:

  1. काश सब खुद को अपने आईने में उस पर जमी धूल हटा कर देखते...बहुत सुन्दर..

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