छोड़ता कोई किसी को है डाँठ कोई और खाता है
इस देश में होने लगा है बहुत कुछ अजीब गरीब
किसी की करनी का फल किसी और की झोली में चला जाता है
फैसला घर वालों का घर में ही लिया जाता है
घर से निकल कर कैसे जनता में चला जाता है
चीर फाड़ होना शुरु होती है
कोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है
बकरी खेत में खुली घूम रही होती है
फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है
लिखने के लिये रोज ही मिलता है कुछ मसाला
पकाते पकाते कुछ कच्चा कुछ पक्का हो जाता है
खाने को भी किसने आना है
किसी के लिये नमक कम किसी के लिये मसाला ज्यादा हो जाता है
कौन किसके साथ है कौन किसके साथ नहीं है
पहले भी कभी समझ में नहीं आ पाया
अब इस उम्र में आकर जो क्या आ पाता है
घर संभलता नहीं है जिस किसी से
घर संभलता नहीं है जिस किसी से
वो देश को संभालने के लिये चला जाता है
‘उलूक’ बैठा टी वी के सामने रोज दो में से चार घटाता है।
चित्र साभार: galleryhip.com
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंसटीक ....फिर ..आप जैसा लिखना भी सब को कहाँ आता है .......
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें |
सटीक....
जवाब देंहटाएंअशोक सर सही कह रहे हैं आप जैसा लिखना कहाँ हमें आता है।
जवाब देंहटाएंरचना पसंद आई।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 03 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं#डाँट
जवाब देंहटाएंसाहिब !!! .. अब तो छुरा और कुल्हाड़ी नहीं, बम और बंदूक लिए सब नज़र आता है .. शायद ...🙈🙊🙉
वैसे भी जिनके घर नहीं सम्भलते, वही देश सम्भालते हैं, चाहे वो .. धी हों या ..दी .. दोनों ही उदाहरण हैं .. शायद ...
चीर फाड़ होना शुरु होती है
जवाब देंहटाएंकोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है
बकरी खेत में खुली घूम रही होती है
फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है
बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏