सोमवार, 9 मार्च 2015

नहीं लिखा जाता है तो क्यों लिखने चला आता है


छोड़ता कोई किसी को है डाँठ कोई और खाता है
इस देश में होने लगा है बहुत कुछ अजीब गरीब
किसी की करनी का फल किसी और की झोली में चला जाता है

फैसला घर वालों 
का घर में ही लिया जाता है
घर से निकल कर कैसे जनता में चला जाता है

चीर फाड़ होना 
शुरु होती है
कोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है

बकरी खेत में खुली 
घूम रही होती है
फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है

लिखने के लिये रोज ही मिलता है कुछ मसाला
पकाते पकाते कुछ कच्चा कुछ पक्का हो जाता है

खाने को भी 
किसने आना है
किसी के लिये नमक कम किसी के लिये मसाला ज्यादा हो जाता है

कौन किसके साथ है कौन किसके साथ नहीं है
पहले भी कभी समझ में नहीं आ पाया
अब इस उम्र में आकर जो क्या आ पाता है

घर संभलता नहीं है 
जिस किसी से
वो देश को संभालने के लिये चला जाता है
‘उलूक’ बैठा  टी वी के सामने रोज दो में से चार घटाता है

चित्र साभार: galleryhip.com

8 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक ....फिर ..आप जैसा लिखना भी सब को कहाँ आता है .......
    शुभकामनायें |

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  2. अशोक सर सही कह रहे हैं आप जैसा लिखना कहाँ हमें आता है।
    रचना पसंद आई।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 03 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  4. #डाँट
    साहिब !!! .. अब तो छुरा और कुल्हाड़ी नहीं, बम और बंदूक लिए सब नज़र आता है .. शायद ...🙈🙊🙉
    वैसे भी जिनके घर नहीं सम्भलते, वही देश सम्भालते हैं, चाहे वो .. धी हों या ..दी .. दोनों ही उदाहरण हैं .. शायद ...

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  5. चीर फाड़ होना शुरु होती है
    कोई छुरा तो कोई कुल्हाड़ी लिये नजर आता है

    बकरी खेत में खुली घूम रही होती है
    फोटो खींचने वाला रस्सी की फोटो खींच लाता है
    बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏

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