किसलिये हुआ जाये
एक अखबार
एक अखबार
क्यों सुनाई जायें खबरें रोज वही
जमी जमाई दो चार
क्यों बताई जायें शहर की बातें
शहर वालों को हर बार
क्यों ना कुछ दिन शहर से
हो लिया जाये फरार
वो भी यही करता है करता आ रहा है
यहाँ जब कुछ कहीं नहीं कर पा रहा है
कभी इस शहर
तो कभी उस शहर चला जा रहा है
घर की खबर
घर वाले सुन और सुना रहे हैं
घर वाले सुन और सुना रहे हैं
वो अपनी खबरों को
इधर उधर फैला रहा है
इधर उधर फैला रहा है
सीखना चाहिये
इस सब में भी बहुत कुछ है
सीखने के लिये ‘उलूक’
इस सब में भी बहुत कुछ है
सीखने के लिये ‘उलूक’
बस एक तुझी से
कुछ नहीं हो पा रहा है
कुछ नहीं हो पा रहा है
यहाँ बहुत हो गया है अब
तेरी खबरों का ढेर
तेरी खबरों का ढेर
कभी तू भी उसकी तरह
अपनी खबरों को लेकर
अपनी खबरों को लेकर
कुछ दिन
देशाटन करने को
क्यों नहीं चला जा रहा है ।
देशाटन करने को
क्यों नहीं चला जा रहा है ।
चित्र साभार: www.fotosearch.com

ऐसा अनर्थ कदापि न कीजियेगा आदरणीय अगर आप अपनी लेखन दुकान कहीं और लगा लेंगे तो हम आपके उत्तम लेखन का रसानन्द लेने कहाँ जायेंगे देशाटन पर जाने की इच्छा बलवती हो तो हमे नई दुकान का पता जरूर बता दीजियेगा।
जवाब देंहटाएंमजेदार प्रस्तुति।
हा हा :)
हटाएंआभार दिव्या ।
बहुत खूब ! उल्लूक के खबर की तो प्रतीक्षा रहती है.
हटाएंनई पोस्ट : एक मंदिर ऐसा भी
आभार राजीव ।
हटाएंवाह जनाब .....आगे भी प्रतीक्षा रहेगी सुशील जी |
जवाब देंहटाएंआभार हर्ष जी ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (16-05-2015) को "झुकी पलकें...हिन्दी-चीनी भाई-भाई" {चर्चा अंक - 1977} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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आभार आदरणीय ।
हटाएंachi kavita
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अरूण जी ।
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआभार ओंकार जी ।
हटाएंrachna bhi sandesh bhi ..aur chahne valo ke liye meseg bhi ??? bahut kuchh hai isame ..inme se kya samjha jaye ??
जवाब देंहटाएंआभार कविता जी । अपनी बात कह देना उचित है समझने वाले अपने हिसाब से समझ लेते हैं :)
हटाएंयार, आपकी कविता पढ़कर मैं सच में मुस्कुरा पड़ा। आपने अख़बार, खबरों और शहर की भागदौड़ को जिस मज़ेदार अंदाज़ में उलूक से जोड़ दिया है, वह बड़ा दिलचस्प लगा। मैं भी अक्सर सोचता हूँ कि हम लोग कितनी बार एक ही चीज़ों में फँसे रहते हैं जबकि दुनिया बाहर घूमने को बुला रही होती है।
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