बुधवार, 10 जून 2015

स्कूल नहीं जाता है फर्जी भी नहीं हो पाता है पकड़ा जाता है तोमर हो जाता है



इसी लिये

बार बार 
कहा जाता है 
समझाया जाता है 

सरकार
के द्वारा 
प्रचारित प्रसारित 
किया जाता है 

पोथी लेकर 
कुछ दिन

किसी 
स्कूल में
चले जाने 
का

फायदा नुकसान 
तुरंत
नहीं भी हो 

सालों साल बाद 
पता चल पाता है 

जब
फर्जी
होने ना होने 
का
सबूत ढूँढने का 
प्रयास

स्कूल के 
रजिस्टर से 
किया जाता है 

वैसे
डंके की चोट पर 
फर्जी होना
और 

साथ में
सर 
ऊँचा रखना 
भी

अपने आप में 
एक कमाल ही 
माना जाता है 

जो है सो है 
सच होना
और 
सच पर टिके रहना 
भी
एक बहुत बड़ी 
बात हो जाता है 

यहीं पर
दुख: भी 
होना
शुरु हो जाता है 

फर्जी के
फंस जाने 
पर
तरस भी आता है 

अनपढ़
और
पढ़े लिखे 
के
फर्जीवाड़े के तरीकों 
पर
ध्यान चला जाता है 

पढ़ा लिखा
फर्जी 

हिसाब किताब
साफ 
सुथरा
रख पाता है 

दिमाग लगा कर 
फर्जीवाड़े को
करते करते 
खुद भी साफ सुथरा 
नजर आता है 

फर्जीवाड़ा
करता भी है 

फर्जीवाड़ा
सिखाता भी है 

फर्जियों के बीच में 
सम्मानित भी 
किया जाता है 

‘उलूक’ का
आना जाना है 
रोज ही आता जाता है 

बस
समझ नहीं पाता है 

पढ़ लिख
नहीं पाया फर्जी 

फर्जी
प्रमाण पत्र लाते समय 

असली
प्रमाण पत्र वाले 
पढ़े लिखे फर्जियों से 

राय लेने
क्यों 
नहीं आ पाता है ?

चित्र साभार: http://www.mapsofindia.com/

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर बरसों मेघा { चर्चा - 2003 } में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. समसामयिकी और व्यंग्यपूर्ण रचना। सादर ... अभिनन्दन।।

    ब्लॉग :- ज्ञान कॉसमॉस
    फेसबुक पेज :- ज्ञान कॉसमॉस

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  3. बात दिलचस्प है मगर सच पर चोट करती है ,....... कोई फ़र्ज़ी बात नहीं आज कल रचनात्मक होने के लिए भी प्रमाण पत्र चाहिए , ३० दिन में लेखन वाले कोर्स पर भी सुना है लोगों को लेखक बनाया जा रहा है ,वरना जय शंकर प्रसाद को भी एक सर्टिफिकेट थमाने वाले कम ना थे उन्होंने शिक्षण स्वयं घर पर स्वतः अध्ययन कर लिया ही था। आजकल योग्यता आंकी कहां जाती है , डिग्री सर्टिफिकेट तौले जाते है।

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    1. आभार अराधना । सटीक विवेचना । ढोंग करने के लिये कहाँ किसी डिग्री की जरूरत होती है ।

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