शनिवार, 28 नवंबर 2015

नहीं आया समझ में कहेगा फिर से पता है भाई पागलों का बैंक अलग और खाता अलग इसीलिये बनाया जाता है

बहुत अच्छा
खूबसूरत सा
लिखने वाले
भी होते हैं
एक नहीं कई
कई होते है
सोचता क्यों
नहीं है कभी
तेरे से भी कुछ
अच्छा क्यों नहीं
लिखा जाता है
लिखना तो
लगभग सब
में से सभी
को आता है
सोचता हूँ
हमेशा सोचता हूँ
जब भी लिखने की
कोशिश करता हूँ
सोचने की भी बहुत
कोशिश करता हूँ
सोचना सच में
मुश्किल हो जाता है
सोचा ही नहीं जाता है
निकल रहा होता है
इधर का उधर का
यहाँ का वहाँ का
निकला हुआ
अपने आप
अपने आप ही
लिखा जाता है
समझाने समझने
की नौबत ही
नहीं आती है
सारा लिखना
लिखाना
पाखाना हो जाता है
किस से कहा जाये
शब्दकोष
होने की बात
किस को
समझाई जाये
भाषा की औकात
कटता हुआ बकरा
गर्दन से बहती
खून की धार
खाता और पीता
मानुष बनमानुष
सब एक हो जाता है
लिखना जरूरी है
खासकर पागलों
के लिये
‘उलूक’ जानता है
भविष्य में पढ़ने
लिखने के विभागों
में उसी तरह
का पाठ्यक्रम
चलाया जाता है
जिसमें आता और
जाता पैसा माल
सुरंगों के रास्ते
निकाला और
संभाला जाता है
कितना बेवकूफ
ड्राईवर निकला
ते
ईस करोड़ लेकर
दिन दोपहर
भागने के बाद
पकड़ा जाता है
इसीलिये बार बार
कहा जाता है
अच्छा खासा
पढ़ा पढ़ाया होना
एक फनकार
होने के लिये
बहुत ही जरूरी
हो जाता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-11-2015) को "मैला हुआ है आवरण" (चर्चा-अंक 2175) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 30 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. वाह..क्या खूब लिखा है...बहुत सुन्दर

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, अपेक्षाओं का कोई अन्त नहीं - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. खूब विचारों विचार हीं नयी उत्पत्ति के सूत्रधार होते है |

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  6. अच्छा खासा पढ़ा पढ़ाया होना
    एक फनकार होने के लिये
    बहुत ही जरूरी हो जाता है ।
    ... बहुत सही सामयिक प्रस्तुति

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  7. हम कितना ही सोंच के लिखें मगर उसे ध्यान से पढ़ेगा और समझेगा कौन !
    नहीं समझ आया फिर भी कहेगा पता है .... !
    :)

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