गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

हिमालय में अब सफेद बर्फ दूर से भी नजर नहीं आती है काले पड़ चुके पहाड़ों को शायद रात भर अब नींद नहीं आती है


कविता करते करते निकल पड़ा 
एक कवि  हिमालयों से
हिमालय की कविताओं को बोता हुआ 

हिमालयी पहाड़ों केबीच से 
छलछल करती नदियों के साथ 
लम्बे सफर में दूर मैदानों को 

साथ चले
उसके विशाल देवदार के जंगल उनकी हरियाली 
साथ चले
उसके गाँव के टेढ़े मेढे‌ रास्ते 
साथ चली
उसके गोबर मिट्टी से सनी 
गाय के गोठ की दीवारों की खुश्बूएं 
और
वो सब कुछ 
जिसे समाहित कर लिया था उसने 
अपनी कविताओं में 

ब्रह्म मुहूर्त की किरणों के साथ 
चाँदी होते होते 
गोधूली पर सोने में बदलते 
हिमालयी बर्फ के रंग की तरह 
आज सारी कविताएं 
या तो बेल हो कर चढ़ चुकी हैं आकाश 
या बन चुकी हैं छायादार वृक्ष 
बस वो सब कहीं नहीं बचा 
जो कुछ भी रच दिया था उसने 
अपनी कविताओं में 

आज भी लिखा जा रहा है समय 
पर कोई कैसे लिखे तेरी तरह का जादू 
वीरानी देख रहा समय वीरानी ही लिखेगा 
वीरानी को दीवानगी ओढ़ा कर लिखा हुआ भी दिखेगा 
पर उसमें तेरे लिखे का इन्द्रधनुष कैसे दिखेगा 
जब सोख लिये हों सारे रंग आदमी की भूख ने 

‘सुमित्रानन्दन पन्त’ 
हिमालय में अब सफेद बर्फ 
दूर से भी नजर नहीं आती है 
काले पड़ चुके पहाड़ों को शायद 
रात भर अब नींद नहीं आती है 

पुण्यतिथी पर नमन और श्रद्धाँजलि 
अमर कविताओं के रचयिता को  ‘उलूक’ की । 

8 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२६ -०६-२०२०) को 'उलझन किशोरावस्था की' (चर्चा अंक-३७४५) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. कविता
    करते करते
    निकल पड़ा

    एक कवि
    हिमालयों से

    हिमालय
    की
    कविताओं को
    बोता हुआ

    वाह!!!
    उत्कृष्ट सृजन

    श्रद्धाँजलि
    अमर कविताओं
    के
    रचयिता को
    ‘उलूक’ की ।
    अनूठा एवं उम्दा...

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  3. आदरणीय सुशील जी , चर्चा मंच पर बहुत दिन पहले ये रचना पढ़ी थी पर लिख ना सकी क्योकि इन दिनों बहुत व्यस्तताएं हावी हैं पर कोई रचना ना पढूं एसा कभी नहीं होता |

    |वैसे भी हर अच्छी रचना मेरी स्मृतियों में बनी रहती है | इस पर ना लिखती तो मुझे बहुत खेद रहता | प्रकृति के सुकुमार कवि के लिए ये सादा सी रचना असाधारण भावों से सजी है | हर शब्द मानों दिल की गहराइयों में उतरता चला जाता है |सचमुच शब्दों के इस जादूगर सरीखा कौन प्रकृति को परिभाषित करेगा ?

    कौन है जो इस कुदरत के स्नेहिल सानिध्य हेतु सर्वस्व लुटाने की कुव्वत रखता है ? कौन है जो लिखदे --छोड़ द्रुमों की मृदु छाया//तोड़ प्रकृति से भी माया //बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?////

    | ये पंक्तियाँ मुझे भी सुधा जी की तरह बहुत विशेष लगी --

    कविता करते करते //निकल पड़ा //एक कवि //हिमालयों से//हिमालयकी //कविताओं को //बोता हुआ/////

    और सच है उनकी कवितायेँ आज साहित्य प्रेमियों के लिए एक सघन वृक्ष -सी ही तो हैं | साहित्य और काव्य माधुरी के पुरोधा को शत- शत नमन !और आपको विशेष आभार और शुभकामनाएं इस भावपूर्ण अद्भुत काव्य सृजन के लिए | सादर

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 17 फरवरी 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  5. कविवर सुमित्रा नन्दन पंत जी की रचनात्मकता को समर्पित बहुत सुन्दर सृजन ।

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  6. कविता करते करते निकल पड़ा
    एक कवि हिमालयों से
    हिमालय की कविताओं को बोता हुआ

    हिमालयी पहाड़ों केबीच से
    छलछल करती नदियों के साथ
    लम्बे सफर में दूर मैदानों को
    .
    बेहतरीन पंक्तियाँ 🙏

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