रविवार, 4 नवंबर 2018

क्यों कह देता होगा कुछ भी लिखे को कविता कोई कवि नहीं करते बकबक लिखते हैं दिमाग पर लगा कर जोर

कैसे
बनती होगी
एक कविता

रस छन्द
और
अलंकार
से
सराबोर

 कैसे
सोचता होगा
एक कवि

क्या
देखता होगा

और
किस दिशा
की ओर

कौन
पढ़ लेता होगा

आँखें
कवि की खोल
मन में अपने

हो लेता होगा
उतना ही विभोर

इन्द्रियाँ
बस में
होती होंगी
किस की इतनी

अवशोषित
कर लेता होगा

जो केवल
संगीत
छान कर
सारे शोर

किस के
पन्ने में
छपे अक्षर

नजर आना
शुरु
हो जाते होंगे
एक पाठक को

मोती जैसे
लपक रहा हो
चमक देख कर

उनकी
तरफ कोई
गोताखोर

 शायद:

अनन्त में
होता होगा
ध्यान केन्द्रित

दूर बहुत
होते होंगे
जोकर
कलाकार
चोर छिछोर

नजर पड़ती
होगी बस
सारे सफेद
कबूतरों पर

काले कौओं
को समझा कर
ले जाता होगा

समय
कहीं किसी
मोड़ की ओर

सीख:

क्यों
बैठा
रहता होगा
‘उलूक’

करने को
बकवास

देखता
घनघोर
अमावस में भी

फाड़ कर
आँखें चार
किसी पाँचवीं
दिशा की छोर

सीखता
क्यों नहीं होगा
थोड़ा सा भी
हटकर लिखना
अच्छा लिखना

मुँह
मोड़ कर
इधर उधर से

देख देख कर

कहीं
कुछ जमीन
के अन्दर

कुछ
आकाश
की ओर।

चित्र साभार: https://melbournechapter.net

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