शुक्रवार, 12 जून 2020

गुलामी सुनी सुनाई बात है लगभग सत्तर साल की महसूस कर बेवकूफ स्वतंत्र तो तू अभी कुछ साल पहले ही से तो हो रहा था




देखा
नहीं था
बस
कुछ सुना था

कुछ
किताबों के
सफेद पन्नों
पर

काले से
किसी ने कुछ
आढ़ा तिरछा सा
गड़ा था

उसमें से थोड़ा
मतलब का कुछ कुछ
पढ़ा था

बहुत कुछ
यूँ ही
पन्नों के साथ चिपका कर
बस
पलट 
चला था 

पल्ले ही नहीं
 पड़ा था

ना गुलाम
देखे थे
ना गुलामी
महसूस की थी
कहीं कोई
बंदिश नहीं थी

सब कुछ
आकाश था
चाँद तारों
और
चमकदार सूरज से
लबालब
भरा था

ऐसा
भी नहीं था
कहीं कूड़ा नहीं था

जैविक था
अजैविक भी था
सोच में भी
अलग से रखा
कूड़ादान
भी वहीं था

वैसा ही जैसे
 आज का
अभी का हो
रखा चमका हुआ
नया था

खुल भी रहा था
बन्द
ढक्कन के साथ
हो
रहा था

एक था गाँधी
कर गया था
गुड़ का गोबर
तब कभी

अभी अभी
कहीं कोई कह
रहा था

गाय बकरी भैंस
के दिन
फिर रहे थे
अब
कहीं जाकर

गोबर का
बस और बस
सब गुड़
हो रहा था

लड़का 
लिये छाता  
एक छत से कूदता
दूसरी छत
चाकलेट फेंकता

धूप से बचाता 
नीचे कहीं
राह चलती

एक लड़की

सामाजिक
दूरी बना
खुश
हो रहा था

समय
घड़ी की टिक टिक
के साथ

अन्दर
कहीं घर के
तालाबन्द हो कर
जार जार
खुशी के आँसू
दो चार बस रोज

 दिखाने का
कुछ रो
रहा था

महामारी
दौड़ा रही थी
मीलों
आदमी नंगे पाँव
सड़क पर

नेता
घर बैठ
चुनावी रैलियाँ
बन्द सारे
दिमागों में
बो रहा था

‘उलूक’
गुलामी
सुनी सुनाई बात है
लगभग
सत्तर साल की

महसूस कर
बेवकूफ

स्वतंत्र तो
तू अभी
कुछ साल
पहले ही से
हो रहा था।

चित्र साभार: www.123rf.com

19 टिप्‍पणियां:

  1. हमेशा की तरह अनेक विषय का निचोड़ लिए अनूठी अभिव्यक्ति सर।
    ----
    महामारी का मैराथन से परेशान लोग
    भयभीत हालात के बरछे से हलकान लोग
    स्वतंत्र है कि गुलाम पूछिएगा इत्मीनान से
    गूँगी-बहरी भीड़ में से चीखेंगे बदनाम लोग
    ---//---
    प्रणाम सर।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 13 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. "गाय बकरी भैंस
    के दिन
    फिर रहे थे
    अब"
    --
    बढ़िया व्यंग्य

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी व्यंग्यात्मक रचनाओं को पढ़कर हमेशा ही स्तब्ध सा हो जाता हूँ । कई बारीकियों को आप बखूबी शब्द के व्यंग जाल में लपेट लेते हैं ।
    काश, मैं भी ऐसा लिख पाता।
    जैविक था
    अजैविक भी था
    सोच में भी
    अलग से रखा
    कूड़ादान
    भी वहीं था

    लाजवाब व्यंग रचना। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय ।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 15 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बहुत कुछ कहती बेहतरीन कृति ।

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  7. नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (08-06-2020) को 'कुछ किताबों के सफेद पन्नों पर' (चर्चा अंक-3733) पर भी होगी।

    --


    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।

    --

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    --

    -रवीन्द्र सिंह यादव



    आपकी रचना की पंक्ति-

    'कुछ किताबों के सफेद पन्नों पर'

    हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।



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  8. वाह!!एक साथ बहुत सारे विषयों को समेटना और इतना सार्थक सृजन ..नमन आपकी लेखनी को 🙏

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  9. वाह! लाजवाब सृजन आदरणीय सर.
    सादर

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  10. तीखी बात पर कई माइनो सच्ची बात ... पर हर सच्ची बात का कारण खोजना ज़रूरी नहीं ... अभी ७० साल हाई तो हुए हैं ...

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  11. गुलामी सुनाई बात है लगभग ७0 साल की ..स्वतंत्र तो तू अभी कुछ साल पहले से ही हो रहा था.
    क्या बात है तीखा और लाजवाब व्यंग.

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