शनिवार, 18 जुलाई 2020

जमाने को पागल बनाओ


दूर कहीं आसमान में
 उड़ती चील दिखाओ 

कुछ हवा की बातें करो
कुछ बादलों की चाल बताओ

कुछ पुराने सिक्के घर के
मिट्टी के तेल से साफ कर चमकाओ

कुछ फूल कुछ पौंधे
कुछ पेंड़ के संग खींची गयी फोटो
जंगल  हैंं बतलाओ

तुम तब तक ही लोगों के
समझ में आओगे
जब तक तुम्हारी बातें
तुम्हें खुद ही समझ में नहीं आयेंगी
ये अब तो समझ जाओ 

जिस दिन करोगे बातें
किताब में लिखी
और
सामने दिख रहे पहाड़ की

समझ लो कोई कहने लगेगा
आप के ही घर का

क्या फालतू में लगे हो
जरा पन्ने तो पलटाओ

कुछ रंगीन सा दिखाओ
कुछ संगीत तो सुनाओ

नहीं कर पा रहे हो अगर

एक कनिस्तर खींच कर
पत्थर से ही बजा कर टनटनाओ

जरूरी नहीं है
बात समझ में ही आये समझने वाली भी
पढ़ने सुनने वाले को
जन गण मन साथ में जरूर गुनगुनाओ

जरूरी नहीं है
उत्तर मिलेंं नक्कारखाने की दीवारों से
जरूरी प्रश्नों के
कुछ उत्तर कभी
अपने भी बना कर भीड़ में फैलाओ

लिखना कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है
नजर रखा करो लिखे पर

कुछ नोट खर्च करो
किताब के कुछ पन्ने ही हो जाओ

‘उलूक’
चैन की बंसी बजानी है
अगर इस जमाने में

पागल हो गया है की खबर बनाओ
जमाने को पागल बनाओ।

चित्र साभार:
http://www.caipublishing.net/yeknod/introduction.html

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब आदरणीय सुशील जी !!!
    जमाने को पागल बनाओ
    सब कुछ बताओ , पर सच छुपा जाओ !!
    हमेशा की तरह लाजवाब | हार्दिक शुभकामनाएं|

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 19 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (20-07-2020) को 'नजर रखा करो लिखे पर' ( चर्चा अंक 3768) पर भी होगी।

    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।

    --

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    --

    -रवीन्द्र सिंह यादव




    आपकी रचना की पंक्ति-

    "नजर रखा करो लिखे पर"

    हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।

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    उत्तर
    1. वाह ! वर्तमान की सटीक तस्वीर दिखती रचना आदरणीय। निःशब्द।

      हटाएं
  4. हमेशा की तरह लाजवाब.

    तुम तब तक ही लोगों के
    समझ में आओगे
    जब तक तुम्हारी बातें
    तुम्हें खुद ही समझ में नहीं आयेंगी...वाह!निशब्द हूँ सर.

    जवाब देंहटाएं
  5. इशारों-इशारों में सबी कुछ तो कह गयी आपकी रचना।

    जवाब देंहटाएं
  6. जरूरी नहीं है
    उत्तर मिलेंं नक्कारखाने की दीवारों से
    जरूरी प्रश्नों के
    कुछ उत्तर कभी
    अपने भी बना कर भीड़ में फैलाओ
    बहुत खूब सर

    जवाब देंहटाएं
  7. 'कुछ नोट खर्च कर किताब के कुछ पन्ने हो जाओ'
    ----
    आपकी रचना से सभी अपनी समझ की पंक्तियां निकालकर ले जाते है:)
    बेहतरीन रचना।
    प्रणाम सर

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  8. तुम तब तक ही लोगों के
    समझ में आओगे
    जब तक तुम्हारी बातें
    तुम्हें खुद ही समझ में नहीं आयेंगी
    ये अब तो समझ जाओ
    जिस दिन करोगे बातें
    किताब में लिखी
    और
    सामने दिख रहे पहाड़ की
    समझ लो कोई कहने लगेगा
    आप के ही घर का
    क्या फालतू में लगे हो
    वाह!!!
    क्या बात...
    लाजवाब सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  9. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 30 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  10. कविता की हर पंक्ति दिल को छू जाती है। जैसे -
    "कुछ हवा की बातें करो
    कुछ बादलों की चाल बताओ ।"
    सुन्दर रचना और सराहनीय प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार ।

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