शनिवार, 15 मई 2021

क्या बेवफाई क्या रुसवाई क्या समझ क्या सोच लिखना जरूरी है इससे पहले कोई बताये दरवाजे पर खड़ी है मौत आई है



जो कहीं नहीं है बस वही नजर आये
जो सब जगह है उसे बताने की मनाही है
सब को सब समझ में कहाँ आता है
आ भी गया तो कह देना दूसरी लहर आई है

महफिल कहीं नहीं सजती अब
अकेले रहा करो इसी में सबकी भलाई है
उठ के यूँ ही चले जा रहे हैं लोग
छोड़ कर के आने में ही सुना रुसवाई है

जाना ही होता है सब जायेंगे
मौत भी एक रस्म है बात लिखी लिखाई है
सच को झूठ और झूठ को सच बता
खेल ले तेरे पाले में नई बॉल आई है

पढ़ा लिखा अनपढ़
फर्क आदमी आदमी का
आदमी ने बात बनाई है
कौन क्या कर रहा होता है किसे पता
लिखना लिखाना रस्म अदाई है

उलाहना आसान है
भुगत ले क्यों परेशान है
रोज होता है नई बात नजर नहीं आई है
आना जाना बना रहे
जान पहचान जरूरी है
कुछ ले और कुछ दे दोनों की भलाई है

‘उलूक’ एक लहर से दूसरी लहर तक
सफर में सनक जाना मना है बेवफाई है
तीसरी लहर तक लिखना ना भूल जाना
मरी ही सही सोच की हौसला अफजाई है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

26 टिप्‍पणियां:

  1. उलाहना आसान है
    भुगत ले क्यों परेशान है
    रोज होता है नई बात नजर नहीं आई है
    आना जाना बना रहे
    जान पहचान जरूरी है
    कुछ ले और कुछ दे दोनों की भलाई है
    मन से व्यथित
    यशोदा..

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (17-05-2021 ) को 'मैं नित्य-नियम से चलता हूँ' (चर्चा अंक 4068) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. सदैव की भांति गहन भावों से सज्जित सुन्दर सृजन ।

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  4. वाह ,खूबसूरत ग़ज़ल हुई ये तो ।
    आज के वक़्त का पूरा खाका खींच दिया ।

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  5. बहुत ही शानदार रचना आज के वर्तमान समय को दिखाते हुए

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  6. महफिल कहीं नहीं सजती अब
    अकेले रहा करो इसी में सबकी भलाई ह

    बहुत सुंदर

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  7. अब तीसरी लहर आने तक क्या पता क्या हो? लिखना नही भूलना है. बहुत खूब.

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  8. समय की नब्ज पकड़कर लिखी
    कमाल की रचना

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  9. मौत भी एक रस्म है बात लिखी लिखाई है
    सच को झूठ और झूठ को सच बता
    खेल ले तेरे पाले में नई बॉल आई है

    बहुत खूब सर... आपका लिखा पढ़ना जैसे रविश कुमार के न्युज को सुनना सा लगता है

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  11. सच को झूठ और झूठ को सच ?-जब पता ही नहीं कि सच क्या है,सब चले जा रहा है लस्टम-पस्टम.

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  12. बहुत कमाल का तंज़ ...
    बहुत तीखा और सत्य के करीब ... जो है वो नहीं ... जो नहीं उसी का रोना है ...
    क्या बात क्या बात ...

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  13. वाह! गज़ब लिखा सर ।

    जो कहीं नहीं है बस वही नजर आये
    जो सब जगह है उसे बताने की मनाही है
    सब को सब समझ में कहाँ आता है
    आ भी गया तो कह देना दूसरी लहर आई है...वाह!

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