शुक्रवार, 4 जून 2021

कुछ अहसास होना मजबूरी है कविता खूबसूरत शब्द है बकवास जरूरी है जी भर कर भौंकना चाहता हूँ

 


लिख लिया जाये कहीं किसी कागज में
एक खयाल
बस थोड़ी देर के लिये उसे रोकना चाहता हूँ

ना कागज होता है कहीं
ना कलम होती है हाथ में
यूँ ही सब भूल जाने के लिये
भूलना चाहता हूँ

ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
इधर से लेकर उधर तक होती हैं
उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ

तरतीब से लगाने में ख्वाहिशों को
पूरी हो गयी जिंदगी
उधड़े हुऐ में से
गिरी ख्वाहिशों को लपेटना चाहता हूँ

सच और सच्चाई
बहुत पढ़ लिया छपा छपाया
कुछ अधलिखी किताबों को अब ढूँढना चाहता हूँ

झूठ के पैर ही पैर देखे हैं
एक नहीं हैं कई हैं इफरात से हैं
अब बस उन्हीं में लोटना चाहता हूँ

उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
उसका ही किया कराया है सब कुछ
उसी के बादलों की बारिश में
जी भर कर भीगना चाहता हूँ

खोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
मतलब मरा मिलता है जिनका
शब्दकोश में देखना चाहता हूँ
लगे हैं कत्ल करने में
शब्द दर शब्द हर तरफ शब्दों का बेरहमी से
रुक भी लें 
मैं घुटने टेकना चाहता हूँ

लिखने वाले कुछ अलग पढ़ने वाले कुछ अलग
लिखने पढ‌ने वाले कुछ अलग से लगें
किताबें बेचना चाहता हूँ
कुछ तो लगाम लगा
अपनी चाहतों पर ‘उलूक’
सम्भव नहीं है सोच लेना
सब तो हो लिया
अब खुदा हो लेना चाहता हूँ

चित्र साभार: https://friendlystock.com/product/german-shepherd-dog-barking/

12 टिप्‍पणियां:

  1. उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
    दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
    उसका ही किया कराया है सब कुछ
    उसी के बादलों की बारिश में जी भर कर भीगना चाहता हूँ...वाह!गज़ब ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. ख्वाहिशें होती हैं बहुत होती हैं
    इधर से लेकर उधर तक होती हैं
    उनमें से कुछ समेटना चाहता हूँ

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 06 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (6 -6-21) को "...क्योंकि वन्य जीव श्वेत पत्र जारी नहीं कर सकते"(चर्चा अंक- 4088) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

    जवाब देंहटाएं
  5. झूठ के पैर ही पैर देखें हैं इफ़रात से.....
    बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. खोदने में लगा हूँ कबर कुछ शब्दों की
    मतलब मरा मिलाता है जिनका
    शब्दकोश में देखना चाहता हूँ - - सार्थक सृजन - - साधुवाद सह।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ख़ूब ...
    सब चाहते हैं ख्वाहिशें समेटना पर ऐसा कहाँ हो पाता है ...
    अच्छी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  8. उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
    दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
    उसका ही किया कराया है सब कुछ
    उसी के बादलों की बारिश में जी भर कर भीगना चाहता हूँ
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब एवं सार्थक सृजन हमेशा की तरह।

    जवाब देंहटाएं

  9. उसकी चौखट पर सुना है बड़ी भीड़ है
    दो गज की दूरी से उसपर बहुत कुछ चीखना चाहता हूँ
    उसका ही किया कराया है सब कुछ
    उसी के बादलों की बारिश में
    जी भर कर भीगना चाहता हूँ.. दर्द का आक्रोश भलीभांति दिख रहा है,सार्थक सृजन ।

    जवाब देंहटाएं