सोमवार, 21 जून 2021

माफ कर देना लिख दिया इतना बहुत खेद है

 


इसका लिखना
उसके लिखने से कुछ ज्यादा सफेद है
काला कौआ लिखता है
कबूतर लिखे
कह दे गलत लिख दिया खेद है

जो उतरता है आसमान से
उसे लिखने की हिम्मत करें
किसी की जमीन खोद कर
निकले हुऐ कुछ पत्थर लिखना फरेब है

वो बहुत खूबसूरत है सबको पता है
सब लगे हैं देखने में उसे लेकर चिराग हाथ में
भूल कर वो चाँद है पागल हुआ हर एक है

हर किसी के आस पास है चाँद ही है
नजर नजदीक की बहुत ही खराब है
सबको बता रहा है फर्जी समझाता हुआ नेक है

सीधी लकीर
किस लिये लिखनी किसके लिये लिखनी
कुछ टेढ़ा सा लिखना बहुत जरूरी है
उसका दिमाग है बहुत ही तेज है

कुत्ते गिन रहा है शहर के सारे
किस की हिम्मत है पूछ ले
गधे भी है घूमते हैं गली में बड़े बड़े हैँ
शोर जिनका देश है विदेश है

कुछ भी लिख देने का फैशन है
लिख रहे हैं कुछ गधे
कुछ शेर कुछ बकरियाँ
मगर खबर मेंं कुत्तों पर आजकल
नजर विशेष है

उलूक कुछ तो किया कर शरम
कुछ लिहाज 
लिखते समय लिखने लिखाने वालों का

ये क्या हुआ
कुछ ऐसा लिख दिया कुछ ना निकले मतलब
एक लम्बे लिखे वाक्य का

अंत में कह दिया हो जिसमें
माफ कर देना लिख दिया इतना बहुत खेद है

चित्र साभार:
https://myinnerowl.com/

17 टिप्‍पणियां:

  1. कल जो लिखा, उसके लिए आज खेद है.
    ऐ रावण ! तेरे साधु-वेश के पीछे क्या भेद है?

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  2. छुप छुपा के सारा छुपा हुआ कह गई आपकी ये उत्कृष्ट रचना। नायाब तरीका।नमन आपको ।

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  3. कुछ टेड़ा सा लिखना बहुत जरूरी है.............. किसी को सीधा करने के लिए

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२३-0६-२०२१) को 'क़तार'(चर्चा अंक- ४१०४) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. कैसे इतनी गहराई है लेखन में
    सदैव सोचती हूँ मैं

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  6. अंत में कह दिया हो जिसमें
    माफ कर देना लिख दिया इतना बहुत खेद है, बहुत सटीक बात लिखी है सर आपने,,आपकी लेखनी को नमन ।

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  7. सटीक सृजन । हमेशा की तरह लाजवाब ।

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  8. कुछ ऐसा लिख दिया जिसका निकले न कोई मतलब .....लेकिन आपके हर लिखे का मतलब होता है ..

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  9. हमेशा की तरह.... कुछ-कुछ में छुपा बहुत कुछ ,सादर नमन आपको सर

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  10. सच है आजकल खेद है कह कर ही माफ़ी हो जाती है ... जैसे की माफ़ी माँग ली हो ... बहुत कुछ कहने का प्रयास ...

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  11. अरे, खेद काहे का?लिखना तो अधिकार है हमारा;जो न पढ़े, वह एहसान फ़रामोश.

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