रविवार, 18 जून 2023

समझ में आना बंद हो गया



बकबकाना बंद हो गया
इधर से छोड़ उधर से आना जाना बंद हो गया
किताब अपनी खुद की दिखती नहीं हाथ में
कलम कान के पीछे लगाना बंद हो गया

बड़बड़ाना बंद हो गया
माथे में सलवटें बनती नहीं हैं
हवा में यूं ही हाथ हिलाना बंद हो गया

कहना सुनाना बंद हो गया
लिखना लिखाना बंद हो गया
जोर लगा कर हैइशा कोई फ़ायदा नहीं
कुछ भी सोच में आना बंद हो गया

हड़बड़ाना बंद हो गया सकपकाना बंद हो गया
सुकून शब्दकोष में सो गया
नीद बेहोशी सी हो गयी
सपनों का आना बंद हो गया

फड़फड़ाना बंद हो गया
हवा हवा हो गयी पानी पानी हो गया
आईने में चेहरा नजर आना बंद हो गया

महकना महकाना बंद हो गया
रेत फ़ैलाने लगा शहर दर शहर
रेगिस्तान का ठिकाना बंद हो गया

चहचहाना बंद हो गया
उल्लुओं का रेला बढ़ता चला गया
कौन किस से मिले कारवाँ कैसे बने
मिलना मिलाना बंद हो गया

दिमाग बंद कर खुद का
पकाने लगा खुद खुदा और उसकी भीड़ का सिपाही
‘उलूक’ का पकाना बंद हो गया |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/