किताबें तो एक सी थी लिखा भी एक सा था
शायद पढ़ाने वाले ही कुछ और थे
लिखे हुए पन्नो पर हस्ताक्षर थे एक समय के ही थे
घड़ी पहने लोग कोई और थे
घड़ी पहने लोग कोई और थे
सिहासन नहीं था कहीं भी ना ही था राजा कहीं
समझाने वाले थे मगर कहीं और थे
समझाने वाले थे मगर कहीं और थे
समझ अपनी थी अपनी उनकी समझ उनकी ही थी
और थे कुछ चोर मगर चोर थे
और थे कुछ चोर मगर चोर थे
हम भी देखते थे चोर थे वो भी देखते थे चोर थे
चोर ही थे मगर जो सच में चोर थे
चोर ही थे मगर जो सच में चोर थे
चोर कहाँ चोर होते थे जहां सब तरफ सुने थे बस मोर थे
मोर थे हर तरफ बस मोर थे
मोर थे हर तरफ बस मोर थे
चोर थे ही जरूरत बन चुकी थी इस तरफ थे बेकार थे
उस तरफ आये इक शोर थे
उस तरफ आये इक शोर थे
चोर होना ही जरूरी था जो नहीं हो पा रहे थे
सच में बेचारे थे बहुत ही कमजोर थे
सच में बेचारे थे बहुत ही कमजोर थे
चोर होना था यही सन्देश होना था मशहूर होना था
नहीं कहना था बस मजबूर थे
नहीं कहना था बस मजबूर थे
‘उलूक’ की किताबें थीं बंद थीं दिमाग था मगर बस था
वो कुछ बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे |
वो कुछ बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे |
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंचोर होना था यही सन्देश होना था मशहूर होना था
जवाब देंहटाएंनहीं कहना था बस मजबूर थे
-मशहूर होना ही जरुरी हो गया है... बाकी जो है सो है...