फिर से टपकने लगी हैं बूंदें
सूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है
रेत के सन्नाटे ने भी करवट ली है
कुछ धूल सी उड़ी है
ऐसा क्यों हुआ है
हुआं हुआं बरसों हो गए हैं सुने
शहर के जंगलों में फिर कुछ हुआ है
कितना हुआ है
सूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है
रेत के सन्नाटे ने भी करवट ली है
कुछ धूल सी उड़ी है
ऐसा क्यों हुआ है
हुआं हुआं बरसों हो गए हैं सुने
शहर के जंगलों में फिर कुछ हुआ है
कितना हुआ है
शब्द डगमगाते लगे हैं
कागज में चले हैं आभास कुछ हुआ है
खाली बोतलों ने कुछ कहा है
कैसे कुछ हुआ है
पागल हो चुका है कोई
पागलपन नापने का थर्मामीटर
कहीं कल ईजाद ही हुआ है
कागज में चले हैं आभास कुछ हुआ है
खाली बोतलों ने कुछ कहा है
कैसे कुछ हुआ है
पागल हो चुका है कोई
पागलपन नापने का थर्मामीटर
कहीं कल ईजाद ही हुआ है
कितना हुआ है
टपकेगा आसमान से पानी सुना है
अभी बादलों के बीच में
कोई समझौता हुआ है
कहां पर हुआ है
पन्ने भरें हैं लिखे हुए से
पढ़ दी गई हैं किताबें सारी
फिर से लिखने को कहा है
किसने कहा है किससे कहा है
किसका लिखना अपना सा हुआ है
चू लेता है ‘उलूक’ भी
यूं ही घिसते घिसते
कहीं किसी छिद्र से गीला भी हुआ है
नमी का धुआं
धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है |
टपकेगा आसमान से पानी सुना है
अभी बादलों के बीच में
कोई समझौता हुआ है
कहां पर हुआ है
पन्ने भरें हैं लिखे हुए से
पढ़ दी गई हैं किताबें सारी
फिर से लिखने को कहा है
किसने कहा है किससे कहा है
किसका लिखना अपना सा हुआ है
चू लेता है ‘उलूक’ भी
यूं ही घिसते घिसते
कहीं किसी छिद्र से गीला भी हुआ है
नमी का धुआं
धुआं सा हुआ है जैसे भी हुआ है |
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/
हुआ सो हुआ
जवाब देंहटाएंक्यों मरे गदहे को पीटें
लिहाजा अलविदा सावन के लिए
आभार,,,
वंदन
जी सर , क़लम का फिर से बरसना सुखद है हरियाली बनी रहे।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम सर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
फिर से टपकने लगी हैं बूंदें
जवाब देंहटाएंसूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है
वाह बेहतरीन पंक्तियाँ, सुंदर रचना गुरुजी
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंफिर से टपकने लगी हैं बूंदें
जवाब देंहटाएंसूखी कलम से
न जाने ऐसा क्या हुआ है
जो भी हुआ अच्छा ही हुआ है
आप लिखते रहे सदा हम पढ़ते रहें
हमेशा की तरह अद्भुत 👌👌🙏🙏
क्या खूब लिखा है आपने, हर लाइन पढ़ते-पढ़ते लगा जैसे कोई उलझनें लेके घूम रहा हो, पर जवाब किसी को नहीं चाहिए, बस महसूस करना है। जैसे किसी ने अपने अंदर की सारी खामोशियां उठा के रख दी हों कागज़ पे, बिना शोर मचाए, बस धीरे-धीरे रिसती हुईं। आप हर चीज़ को ऐसे देखते है जैसे उसमें कुछ छुपा हो, रेत, सन्नाटा, बोतल, धुआं—सब कुछ बात कर रहा है आपकी लिखावट में।
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