उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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बुधवार, 30 सितंबर 2015

निराशा सोख ले जाते हैं कुछ लोग जाते जाते नहीं लौटने का बताकर भी

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आयेंगे  उजले दिन जरुर आएँगे  उदासी दूर कर खुशी खींच लायेंगे  कहीं से भी अभी नहीं भी सही कभी भी  अंधेरे समय के  उजली उम्मीदों के कवि की उम्म...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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