उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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शनिवार, 18 जुलाई 2015

खिंचते नहीं भी हों इशारे खींचने के लिये खींचने जरूरी होते हैं

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थोड़े कुछ गिने चुने रोज के वही उसी तरह के जैसे होते हैं खाने पीने के शौकीन जैसे कहीं किसी खाने पीने की जगह ही होते हैं यहाँ ना ढाबा ना रोट...
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मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

जिसे चाहे लकीर कह ले पीटना शुरु कर और फकीर होले

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अपनी लकीर को पीटने का मजा ही कुछ और है और जब अपनी लकीर को खींचता हुआ साथ साथ पीटता हुआ लकीर खीँचने वाला देखता कहीं और है तो देखता है हर तरफ ...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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