उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2017

डाकिया डाकखाना छोड़ कर चिट्ठियाँ खुले आम खुले में खोल कर दिखा रहा है

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शेरो शायरी बहुत हो गयी मजा उतना नहीं आ रहा है सुना है फिर से चिट्ठियाँ लिखने का चलन लौट कर वापस आ रहा है कागज कलम दवात टिकट लिफाफे के बार...
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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

चुनाव

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चूहा कूदा फिर कूदा कूद गया फिसल पड़ा एक कांच के गिलास में जाकर डूब गया छटपटाया फड़फड़ाया तुरंत कूद के बाहर निकल आया सामने देखा तो दिखाई दे ...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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