उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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सोमवार, 2 दिसंबर 2019

यूँ ही अचानक/ कैसे हुआ इतना बड़ा कुछ/ तब तक समझ में नहीं आयेगा/ उसके धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा होने के निशान रोज के /अपने आसपास अगर देख नहीं पायेगा

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इतने दिन  भी नहीं हुऐ हैं कि याद ना आयें खरोंचें लगी हुई सोच पर और भूला जाये रिसता हुआ कुछ जो ना लाल था ना ही उसे रक्त कहना सही होगा अ...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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