उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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बुधवार, 29 जनवरी 2014

पुरानी किताब में भी बहुत कुछ दबा होता है खोलने वाले को पता नहीं होता है

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एक बहुत पुरानी  सी किताब पर  पड़ी धूल को  झाड़ते ही कुछ  ऐसा लगा जैसे  कहीं किसी पेज  पर कोई चीज  है अटकी हुई  जिससे लग रही है  किताब कुछ  पटक...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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