उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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शनिवार, 12 अक्टूबर 2019

शब्द बच के निकल रहे होते हैं बगल से फैली हुयी स्याही के जब कोई दिल लगा कर लिखने के लिये कलम में स्याही भर रहा होता है

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लिखा हुआ भी रेल गाड़ी होता है कहीं पटरी पर दौड़ रहा होता है कहीं बेपटरी हुआ औंधा गिरा होता है लिखते लिखते कितनी दूर निकल गया होता है...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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