उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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शुक्रवार, 8 मई 2015

एक सीधे साधे को किनारे से ही कहीं को निकल लेना होता है

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धुरी से खिसकना एक घूमते हुऐ लट्टू का नजर आता है बहुत साफ उसके लड़खड़ाना शुरु करते ही घूमते घूमते एक पन्ने पर लिखी एक इबारत लट्टू नहीं होती ...
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रविवार, 21 दिसंबर 2014

खुद को ढूँढने के लिये खोना जरूरी है

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एक नहीं कई बार होता है आभास भटकने का समझ में भी आता है बहुत साफ साफ दिखता भी है जैसे साफ निर्मल पानी में अपना अक्स ही इनकार करता हुआ खुद...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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