उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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रविवार, 14 जनवरी 2018

अलाव में रहे आग हमेशा ही सुलगती हुई इतनी लकड़ियाँ अन्दर कहीं अपने कहाँ जमा की जाती हैं

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लकड़ियों से उठ रही लपटें  धीरे धीरे  एक छोटे से लाल तप्त कोयले में  सो जाती हैं  रात भर में सुलग कर  राख हो चुकी  कोयलों से भरी सिगड़ी  सुबह...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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