उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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बुधवार, 6 मई 2015

क्यों कभी कोई कहीं आग से ही आग को गरम कर रहा होता है

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आग होती है थोड़ी सी कहीं कहीं थोड़ी सी बस राख होती है कहीं धीमा सा सुलगता हुआ नरम एक कोयला होता है कहीं थोड़ा सा धुआँ और बस कुछ धुआँ होता है...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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