उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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मंगलवार, 1 जुलाई 2014

सार्वभौमिक है प्रश्न वाचक चिन्ह भाषा कुछ और होने से क्या हो जाता है

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बहुत सारे प्रश्न  ऐसे ही रोज बेकार के समय में उठते हैं साबुन के बुलबुलों की तरह और फूट जाते हैं काले सफेद रंग बिरंगे सुंदर कुरूप लुभावने...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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