उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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शनिवार, 6 जून 2015

अपनी दिखती नहीं सामने वाले की छू रहे होते हैं

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एक नहीं कई  कई होते हैं अपने ही खुद  के चारों ओर होते हैं सीधे खड़े  भी होते हैं टेढ़े मेढ़े भी  नहीं होते हैं गिरते हुऐ भी  नहीं दिखते हैं उठत...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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