उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

एक ही जैसी कहानी कई जगह पर एक ही तरह से लिखी जाती है कोई याद दिलाये याद आ जाती है

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घर से शहर की तरफ निकलते एक चौराहा हमेशा मिलता है जैसे बहुत ही नजदीक का कोई रिश्ता रखता है चौराहे के पास पहुँचते ही हमेशा सोचा जाता है किस ...
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शुक्रवार, 7 जून 2013

क्या आपने देखी है/सोची है भीड़

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भीड़ देखना  भीड़ सोचना भीड़ में से  गुजरते हुऎ भी  भीड़ नहीं होना बहुत दिन तक  नहीं हो पाता है हर किसी के  सामने  कभी  ना कभी  कहीं न...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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