रविवार, 30 अक्तूबर 2011

नासमझ

कहाँ पता चल पाता है आदमी को
कि वो एक माला पहने हुवे फोटो हो जाता है

अगरबत्ती की खुश्बू भी कहां आ पाती है उसे
तीन पीढ़ियों के चित्र
दिखाई देते हैं सामने कानस में
धूल झाड़ने के लिये
दीपावली से एक दिन पहले

चौथी पीढ़ी का चित्र वहां नहीं दिखता
शायद मिटा चुका होगा सिल्वर फिश की भूख

गद्दाफी को क्रूरता से नंगा कर
नाले में दी गयी मौत
कोल्ड स्टोरेज में रखा उसका शव भी नहीं देख पाया होगा
वो अकूत संपत्ति
जो अगली सात पीढ़ियों के लिये भी कम होती
पर बगल में पड़ा
उसके बेटे का शव भी खिलखिला के हँसता रहा होगा
शायद

कौन बेवकूफ समझना चाहता है ये सब कहानियां
रोज शामिल होता है एक शव यात्रा में
लौटते लौटते उसे याद आने लगती है
जीवन बीमा की किस्त ।

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

समझ

मेरा अमरूद उनको केला नजर आता है
मैं चेहरा दिखाता हूँ वो बंदर बंदर चिल्लाता है
मैं प्यार दिखाता हूँ वो दांत दिखाता है

मेरी सोच में लोच है उसके दिमाग में मोच है
धीरे धीरे सीख लूंगा
उसको डंडा दिखाउंगा प्यार से गले लगाउंगा

जब बुलाना होगा 
तो जा जा चिल्लाउंगा
डाक्टर की जरूरत पड़ी तो एक मास्टर ले आऊंगा

तब मेरा अमरूद उसको 
अमरूद नजर आयेगा
मेरी उल्टी बातों को वो सीधा समझ जायेगा ।