मंगलवार, 31 जुलाई 2012

जो है क्या वो ही है

किसी का
लिखा हुआ
कुछ कहीं
जब कोई
पढ़ता
समझता है

लेखक
का चेहरा
उसका
व्यक्तित्व
भी गढ़ने
की एक
नाकाम
कोशिश
भी साथ
में करता है

सफेदी
दिख रही
हो सामने
से अगर

कागज पर
एक सफेद
सा चेहरा
नजर आता है

काला
सा लिखा
हुआ हो कुछ

चेहरे
पर कालिख
सी पोत
जाता है

रंग
लाल
पीले हों
कभी कभी
कहीं
गडमगड्ड
हो जाते हैं

लिखा हुआ
होता तो है
पर पहचान छुपा
सी कुछ जाते हैं

लिखने पर
आ ही
जाये कोई
तो बहुत
कुछ लिखा
जाता है

पर अंदर
की बात
कहाँ कोई
यहाँ आ
कर बता
जाता है

खुद के
सीने में
जल रही
होती है 
आग
बहुत सारी

जलते
जलते भी
एक ठंडा
सा सागर
सामने ला
कर दिखाता है

किसी
किसी को
कुछ ऎसा
लिखने में
भी मजा
आता है

आँखों
में जलन
और
धुआँ धुआँ
सा हो जाता है

वैसे भी
जब साफ
होता है पानी

तभी तो
चेहरा भी
उसमें साफ
नजर आता है

यहां तो
एक चित्र
ऎसा भी
देखने में
आता है
जो अपनी
फोटो में
भी नजरें
चुराता है

ले दे कर
एक चित्र
एक लेख
एक आदमी

जरूरी
नहीं है जो
दिखता है
वही हो
भी पाता है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. सब कुछ वो ही है, पर आदमी कब बदल जाए, कुछ पता नहीं!

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  2. सच कहा ..जो दिखता है
    वही नहीं भी हो भी पाता है !....

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  3. एक चित्र
    एक लेख एक आदमी
    जरूरी नहीं है
    जो दिखता है
    वही हो भी पाता है !... पर समझता कौन है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. यहां तो एक चित्र
    ऎसा भी देखने में
    आता है जो
    अपनी फोटो में
    भी नजरें चुराता है

    ....यही आज के जीवन का कटु सत्य है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. सुन्दर |
    धनबाद वापस आ गया हूँ -

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