गुरुवार, 16 अगस्त 2012

भ्रम एक शीशे का घर

हम जब
शरीर
नहीं होते हैं
बस मन
और
शब्द होते हैं

तब लगता है
शायद ज्यादा
सुन्दर और
शरीफ होते हैं

आमने सामने
होते हैं
जल्दी समझ
में आते हैं
सायबर की
दुनियाँ में
कितने
कितने भ्रम
हम फैलाते हैं

पर अपनी
आदत से हम
क्योंकी बाज
नहीं आते हैं
इसलिये अपने
पैतरों में
अपने आप ही
फंस जाते हैं

इशारों इशारो
में रामायण
गीता कुरान
बाइबिल
लोगों को
ला ला कर
दिखाते हैं

मुँह खोलने
की गलती
जिस दिन
कर जाते हैं
अपने
डी एन ऎ का
फिंगरप्रिंट
पब्लिक में
ला कर
बिखरा जाते हैं

भ्रम के टूटते
ही हम वो सब
समझ जाते हैं

जिसको समझने
के लिये रोज रोज
हम यहाँ आते हैं

ऎसा भी ही
नहीं है सब कुछ
भले लोग कुछ
बबूल के पेड़ भी
अपने लिये लगाते हैं

दूसरों को आम
की ढेरियों पर
लाकर लेकिन
सुलाते हैं

सौ बातों की
एक बात अंत में
समझ जाते हैं

आखिर हम
हैं तो वो ही
जो हम वहाँ हैं
वहाँ होंगे
कोई कैसे
कब तक बनेगा
बेवकूफ हमसे

यहाँ पर अगर
हम अपनी बातों
पर टाई
एक लगाते हैं
पर संस्कारों
की पैंट
पहनाना ही
भूल जाते हैं ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    साझा करने के लिए धन्यवाद!

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  3. भरी शरारत है विकट, नटखट बंड सरीर ।

    शब्द बुद्धि से हीन गर, मुर्दा समझ शरीर।

    मुर्दा समझ शरीर, समझदारी बस इतनी ।

    ज्यों माथे की मौत, देर में दिल से जितनी ।

    सत्यम शिवम् विचार, नाम से न आते हैं ।

    सुन्दरता क्या ख़ाक, व्यर्थ पगला जाते हैं ।।

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  4. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  5. बढ़िया व्यंग्य विनोद और छीज़न आत्मा का इस रचना में है .

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  6. खरगोश का संगीत राग रागेश्री
    पर आधारित है जो कि खमाज थाट
    का सांध्यकालीन राग है,
    स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं,
    पंचम इसमें वर्जित है, पर हमने इसमें अंत में
    पंचम का प्रयोग भी किया है, जिससे
    इसमें राग बागेश्री भी झलकता है.
    ..

    हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया है.

    .. वेद जी को अपने संगीत
    कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि
    चहचाहट से मिलती है.
    ..
    Here is my homepage ; फिल्म

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