रविवार, 2 सितंबर 2012

स्टिकर

कपड़े पुराने
हो जाते हैं
कपडे़ फट
भी जाते हैं

कपडे़ फेंक
दिये जाते हैं
कपडे़ बदल
दिये जाते हैं

कुछ लोग
फटे हुऎ कपडे़
फेंक नहीं
भी पाते हैं

पैबंद लगवाते हैं
रफू करवाते हैं
फिर से पहनना
शुरु हो जाते हैं

दो तरह के लोग
दो तरह के कपडे़

कोई नहीं करता

फटे कपड़ों 
की कोई बात

जाड़ा हो या

फिर हो बरसात

जिंदगी भी

फट जाती है
जिंदगी भी
उधड़ जाती है

एक नहीं

कई बार
ऎसी स्थिति
हर किसी की
हो जाती है

यहाँ मजबूरी

हो जाती है

जिंदगी फेंकी

नहीं जाती है
सिलनी पड़ती है
रफू करनी पड़ती है

फिर से मुस्कुराते हुऎ

पहननी पड़ती है

अमीर हो या गरीब

ऎसा मौका आता है

कभी ना कभी

कहीं ना कहीं
अपनी जिंदगी को
फटा या उधड़ा हुआ
जरूर पाता है

पर दोनो में से

कोई किसी को
कुछ नहीं बताता है

आ ही जाये कोई

सामने से कभी
मुँह मोड़ ले जाता है

सिले हुऎ हिस्से पर

एक स्टिकर चिपका
हुआ नजर आता है

पूछ बैठे कोई कभी

तो खिसिया के
थोड़ा सा मुस्कुराता है

फिर झेंपते हुऎ बताता है

आपको क्या यहाँ
फटा हुआ कुछ
नजर आता है

नया फैशन है ये

आजकल इसे
कहीं ना कहीं
चिपकाया ही
जाता है

जिंदगी

किसकी
है कितनी 

खूबसूरत
चिपका हुआ
यही स्टिकर
तो बताता है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदगी किसकी
    है कितनी
    खूबसूरत
    चिपका हुआ(स्टीकर यही तो बताता है ),यही तो बताता .....नया एक दिन पुराना सौ दिन ,ज़िन्दगी की गत पे गाना सिखाता है ,चिपका हुआ स्टीकर यही तो सिखलाता है ,नै मंजिल नया रस्ता बताता है ....बढ़िया रचना उलूक टाइम्स पर .मुबारक ...
    यही स्टिकर
    तो बताता है !

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  2. इसीलिए तो कहा जाता है कि ज़िन्दगी में कैंची नहीं सूई की ज़रूरत होती है।

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  3. बहुत ख़ूब!
    आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि आज दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

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  4. बहुत अच्छी लगी कविता सर जी।

    आप इतनी जल्दी-जल्दी लगभग रोज ही एक पोस्ट डालते हैं यह भी कमाल है। लेकिन यह कविता औरों से श्रेष्ठ है। मुझे लगता है कि आप यदि थोड़ा ठहर कर कविता खुद संपादित करके डालें, थोड़ा संक्षिप्त करें तो गज़ब की कविताएँ आ सकती हैं आपके ब्लॉग से। गलत लगे तो भी अन्यथा न लें मन में जो बात आई सो लिख दी।

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  5. बहुत अच्छी कविता.....साधुवाद जी

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  6. वाह यह स्टिकर हर किसी को कभी ना कभी लगाना ही पडता है । सुंदर प्रस्तुति ।

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