शनिवार, 8 सितंबर 2012

बात की लम्बाई

कभी
लगता है
बात
बहुत लम्बी
हो जाती है

क्यों नहीं
हाईकू
या हाईगा
के द्वारा
कही जाती है

घटना
का घटना
लम्बा
हो जाता है

नायक
नायिका
खलनायक
भी उसमें
आ जाता है

उसको
पूरा बताने
के लिये
पहले खुद
समझा जाता है

जब
लगता है
आ गई
समझ में
कागज
कलम दवात
काम में आता है

सबसे
मुश्किल काम
अगले को
समझाना
हो जाता है

कहानी
तो लिखते
लिखते
रेल की
पटरी में
दौड़ती
चली जाती है

ज्यादा
हो गयी
तो हवाई
जहाज भी
हो जाती है

समझ
में तो
अपने जैसे
दो चार
के ही
आ पाती है

उस समय
निराशा
अगर
हो जाती है

तुलसीदास जी
की बहुत
याद आती है

समस्या
तुरंत हल
हो जाती है

उनकी
लिखी हुई
कहानी
भी तो
बहुत लम्बी
चली जाती है

आज नहीं
सालों पूर्व
लिखी जाती है

अभी तक
जिन्दा भी
नजर आती है

उस किताब
को भी
बहुत कम
लोग पढ़
पाते है

पढ़ भी
लेते है
कुछ लोग
पर
समझ
फिर भी
कहाँ पाते हैं ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. aapki es unmukt kvita ka purvabhas mujhe ho gya tha,esilye aaj chota likha hai,vaharhal acchi prastuti,

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  3. क्षमा सहित -
    लम्बी लम्बी फेंकिये, अनियंत्रित जब जोश |
    गुरुवर अपनी देखिये, एक्स्ट्रा कक्षा रोष |
    एक्स्ट्रा कक्षा रोष, बड़ी बारीकी होती |
    विश्लेषक श्रीमान, सकल कक्षा है सोती |
    बड़े बड़े से तथ्य, संतरा सरिस मुसम्बी |
    छोटे पैराग्राफ, करें ना बातें लम्बी ||

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