मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

भाई फिर तेरी याद आई


गधे ने किसी गधे को
गधा 
कह कर आज तक नहीं बुलाया
आदमी कौन से सुर्खाब के पर
अपने लगा कर है आया

बता दे कुछ 
जरा सा भी किसी धोबी के दुख: को
थोड़ा 
सा भी
वो कम कभी हो कर पाया

किस अधिकार से 
जिसको भी चाहे गधा कहता हुआ
चलता है चला आज तक आया

गधों के झुंड 
देखिये
किस 
शान से दौड़ते जंगलों में चले जाते हैं
बस अपनी 
अपनी गधी या बच्चों की बात ही बस नहीं सोच पाते हैं

जान दे कर 
जंगल के राजा शेर की जान तक बचाते हैं

बस घास को 
भोजन के रूप में ही खाते हैं
घास की ढेरी बना के कल के लिये भी नहीं वो बचाते हैं

सुधर जायें अब 
लोग
जो यूँ ही 
गधे को बदनाम किये जाते हैं
आदमी के कर्मों को कोई क्या कहे 
क्यों अब तक नहीं शर्माते हैं

गधा है कहने 
की जगह अब
आदमी हो गया है 
कहना शुरू क्यों नहीं हो जाते हैं

गधे भी
वाकई में 
गधे ही रह जाते हैं

कोई आंदोलन 
कोई सत्याग्रह
इस उत्पीड़न के खिलाफ
क्यों 
नहीं चलाते हैं ।

चित्र साभार: 
https://www.dreamstime.com/

13 टिप्‍पणियां:

  1. सही लिखा है आपने की अब वह समय आ गया है जब गधा आदमी के नाम से जाना जाये .

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  2. बिलकुल सही कहा है सर आपने, आपकी रचनायें मुझे सदैव प्रभावित करती हैं

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  3. कोई आंदोलन
    कोई सत्याग्रह
    इस उत्पीड़न के
    खिलाफ क्यों
    नहीं चलाते हैं !...प्रस्ताव सही है

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  4. भाई साहब हम तो बचपन से ही इसीलिए सभी को भाई साहब कहतें हैं ,

    गधों की दुनिया में रहतें हैं ,सबको राम राम कहतें हैं .

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  5. भाई साहब हम तो बचपन से ही इसीलिए सभी को भाई साहब कहतें हैं ,

    गधों की दुनिया में रहतें हैं ,सबको राम राम कहतें हैं .

    इतनी कसी हुई लाये हो,गधे को हमारा भाई बताये हो .

    मीडिया से भी नहीं घबराए हो .

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (13-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  7. सुन्दर प्रस्तुती ।

    बधाई भाई जी ।।

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  8. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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