रविवार, 7 अक्तूबर 2012

संडे है आज तुझे कर तो रहा हूँ याद

इस पर लिखा उस पर लिखा
ताज्जुब की बात 
तुझ पर कभी कुछ नहीं लिखा

कोई बात नहीं
आज जो कुछ देख कर आया हूँ
उसे अभी तक 
यहाँ लिख कर नहीं बताया हूँ

ऎसा करता हूँ
आज कुछ भी नहीं बताता हूँ
सीधे सीधे
तुझ पर ही कुछ
लिखना शुरू हो जाता हूँ

इस पर या उस पर लिखा
वैसे भी किसी को
समझ में कब कहाँ आता है
काम सब
अपनी जगह पर होता चला जाता है

इतने बडे़ देश में 
बडे़ बडे़ लोग 
कुछ ना कुछ करते जा रहे हैं
अन्ना जैसे लोग
भीड़ इकट्ठा कर गाना सुना रहे हैं

अपने कनिस्तर को
आज मैं नहीं बजा रहा हूँ

छोड़
चल आज तुझ पर ही 
बस कुछ कहने जा रहा हूँ
अब ना कहना 
तुम्हें भूलता ही जा रहा हूँ ।

19 टिप्‍पणियां:

  1. सन्डे पर क्यूँ न लिखा, उसके कारण तीन |
    हफ्ते भर की साड़िया, कुरता पैंट मशीन |
    कुरता पैंट मशीन, इन्हें प्रेस करना पड़ता |
    ख़ाक मिले अवकाश, किचेन का काम अखरता |
    जाती वो बाजार, बैठ मैं देता अंडे |
    हाय हाय यह दिवस, बनाया क्यूँ रे सन्डे ||

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  2. आपकी रचना सोना उस पर रविकर जी की टिप्पणी सुहागा

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  3. संड़े का फंड़ा अच्छा लगा.. अति सुन्दर...

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  4. लिखता जाता हूँ,पर आह सबकी अपनी समझ है...मैं कहकर भी अनकहा रह जाता हूँ

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  5. कर डालो घर का काम,आज दिन है सन्डे
    छुट्टी मनालो आज,कल आ जायेगा मन्डे,,,,,,

    RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

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  6. गाफिल जी अति व्यस्त हैं, हमको गए बताय ।

    उत्तम रचना देख के, चर्चा मंच ले आय ।

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  7. कुछ न करने की भी आदत होनी चाहिए .ऐसे काम जिनमें आपकी कोई दिलचस्पी न हो .तब आप महान बन सकते हैं .किसी दिन कुछ न लिखना भी ऐसा ही एक काम है .सन्डे हो या मंडे ,बने रहो मुस्टंडे ,,पण्डे ,क्लिअर कर लो फंडे.,, कभी न खाना अंडे .

    ram ram bhai
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    सोमवार, 8 अक्तूबर 2012
    अथ वागीश उवाच :ये कांग्रेसी हरकारे

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  8. उस पर लिखा..
    मगर उसका ज़िक्र नहीं.....

    बहुत बढ़िया..
    :-)

    सादर
    अनु

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  9. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 25 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  10. बेहतरीन रचना हमेशा की तरह सटीक और सार्थक आदरणीय

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  11. मेरी भूरि-भूरि प्रशंसा वाला एक उपन्यास लिखो और साहित्याकाश मेरे साथ ही अपना नाम भी अमर कर दो.

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  12. सत्ताधारियों की स्तुति करते हुए एक उपन्यास लिखो और फिर ऊंची कुर्सी पर फ़ेविकोल लगा कर उस पर चिपक जाओ.

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  13. ''...
    इतने बडे़ देश में बडे़ बडे़ लोग
    कुछ ना कुछ करते जा रहे हैं
    अन्ना जैसे लोग
    भीड़ इकट्ठा कर गाना सुना रहे हैं
    ...''

    ये पढकर पता नहीं क्यूँ मुझे अफसोस हुआ। खैर।

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    उत्तर
    1. प्रकाश जी आपको अफसोस हुआ और आप ने व्यक्त कर दिया | व्यंग में यही कमी है पूर्णता में पढ़ें तो अलग अर्थ होता है और अलग कर के पढ़ लें तो अफसोस होता है | खैर |

      हटाएं
  14. छोड़
    चल आज तुझ पर ही
    बस कुछ कहने जा रहा हूँ
    अब ना कहना
    तुम्हें भूलता ही जा रहा हूँ ।
    अच्छा किया आपने, किसी की शिकायत दूर हो !

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  15. वाह! बहुत खूब।
    हमेशा की तरह लाजवाब।

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