बुधवार, 7 नवंबर 2012

ले खा एक स्टेटमेंट अखबार में और दे के आ

पागल उल्लू

आज फिर

अपनी
औकात
भुला बैठा

आदत
से बाज
नहीं आया

फिर
एक बार
लात खा बैठा

बंदरों के
उत्पात पर
वक्तव्य
एक छाप

बंदरों के
रिश्तेदारों के

अखबार
के दफ्तर
दे कर
आ बैठा

सुबह सुबह
अखबार में

बाक्स में
खबर
बड़ी सी
दिखाई
जब पड़ी

उल्लू के
दोस्तों के
फोनो से

बहुत सी
गालियाँ
उल्लू को
सुनाई पड़ी

खबर छप
गई थी

बंदरों के
सारे
कार्यक्रमों
की फोटो
के साथ

उल्लू
बैठा था
मंच पर

अध्यक्ष
भी बनाया
गया था

बंदरों के
झुंड से
घिरा हुआ

बाँधे
अपने
हाथों
में हाथ ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. छाये उल्लू हर जगह, पा बन्दर का साथ |
    राग यहाँ फैला रहे, डाल हाथ में हाथ |
    डाल हाथ में हाथ, दिवाली आने वाली |
    आये काली रात, खाय जब उल्लू काली |
    तांत्रिक लेते खोज, अगर उल्लू छुप जाये |
    देखो बन्दर मित्र, कहीं ना तुम्हें छकाये ||

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  2. दमदार पोस्ट के लिये सुसील जी बधाई,,,,

    बंदर मिलते बहुत है,उल्लूक मिलते कम
    मगर आज की पोस्ट में,दीखे बड़ा है दम,,,,,

    RECENT POST:..........सागर

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  3. व्यंग्य के रंग उलूक टाइम्स के संग ,

    बंदरों के jalve dekhe ulookon ke sang .

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  4. वो क्या पागल बनेगा, जिसका उल्लू नाम।
    डूब मरो मझधार में, क्या चुल्लू का काम।।

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  5. उल्लू बैठा
    था मंच पर
    अध्यक्ष भी
    बनाया
    गया था
    बंदरों के झुंड
    से घिरा हुआ
    बाँधे अपने
    हाथों में हाथ !
    - अब तो रोज़ का तमाशा है यह !

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  7. सुंदर मनोरंजक प्रस्तुति।
    मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है।

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  8. हँसते हँसते बात कह गये,अपने मन की भाई !
    उस के मन की गांठें खुल गयीं, जिस क समझ में आईं||

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