शनिवार, 16 मार्च 2013

सब हैं नीरो जा तू भी हो जा

हर शख्स के पास
होती है आँख
हर शख्स अर्जुन
भी होता है
तू बैचेन आत्मा
इधर उधर
देखता है
फिर फिरता
रोता है
किसने कहा
तुझसे ठेका
तेरा ही होता है
जब सारे
अर्जुन लगे हैं
तीर निशाने पर
लगाने के लिये
अपनी अपनी
मछलियों की
आँखों में
तेरे पेट में
किस बात
का दर्द होता है
युधिष्ठिर भी है
भीम भी है
नकुल भी है
सहदेव भी है
कृ्ष्ण कैसे
नहीं होंगे
द्रोपदी भी है
चीर भी है
हरण होना भी
स्वाभाविक है
पर ये सब अब
अर्जुनों के तीर
के निशाने नहीं होते
सारे अर्जुनों की
अपनी अपनी मछलियाँ
अपनी अपनी आँख
धूप में सुखा रही हैं
तीर गुदवा रही हैं
खुश हैं बहुत खुश हैं
और तू तेरे पास कोई
काम कभी नहीं होता है
तू तो बस दूसरों की
खुशी देख देख
कर रोता है
कोशिश कर
मान जा
दुनिया को
भाड़ मे घुसा
अपनी भी
एक मछली बना
उसकी आँख
में तीर घुसा
मछली को
भी कुछ दे
कुछ अपना
भी ले
रोम मे
रह कर रोम
में आग लगा
बाँसुरी बजा
सब कर रहे हैं
तू भी कर
मान जा
मत इतरा ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया आदरणीय-
    नीरो-हीरो जीरो
    आभार-

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  2. अपना एक लक्ष्य तो होना ही चाहिए और साथ ही लक्ष्य पर निगाहें ....

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  3. आगे-आगे देखिए होता है क्या?
    आपकी इस पोस्ट को आज चर्चा मंच पर भी लिंक किया गया है।

    http://charchamanch.blogspot.com/2013/03/1186.html

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  4. बहुत खूब भाव पूर्ण प्रस्तुति

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    एक शाम तो उधार दो

    मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

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  5. भाव पूर्ण सुन्दर प्रस्तुति ..

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