रविवार, 22 सितंबर 2013

छुट्टी पर जा कुछ लिख पढ़ के आ

लम्बे अर्से के बाद
मिले एक मित्र से
पूछ बैठा यूं ही
क्या बात है
बहुत दिनों के बाद
नजर आ रहे हो
आजकल काम पर
क्या किसी दूसरे
रास्ते से जा रहे हो
जवाब मिला कुछ ऐसा
काम के दिनों में
ज्यादातर छुट्टी पर
चला जाता हूं
कभी आप भी
चलिये ना मेरे साथ
चलकर आपको भी
किसी दिन वो
जगह दिखाता हूं
जहां चैन से बैठ कर
कुछ लिख पढ़
ले जाता हूं
काम का क्या है
बहुत से पागल होते हैं
काम के दीवाने
उनको थोड़ा थोड़ा
बांट के आता हूं
कागज कलम लेकर
लिखने में अब वो
मजा कहां रह गया
अखबार में लिखने पर
पता चला कि सब को
कहां हूं मैं का कुछ
पता चल गया
इसी लिये यहां
पर लिखता हूं
कौन हूं बस ये बात
किसी को नहीं बताता हूं
अंदर की बातें अपने
अंदर ही रखकर एक
छद्मरुप हो जाता हूं
बहुत सुकून मिलता है
उधर अपने किये हुऐ
इधर उधर का प्रायश्चित
इधर लिख लिख कर
पा जाता हूं
बस यही कारण है
काम के बोझ को
कम करने के लिये
लिखने पढ़ने को
कहीं को भी कभी भी
चला जाता हूं ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. sundar lekhan...par mera kya dosh he jo ek din chhutti par 'bahar' chala gaya? jahan hamari jarurat na ho wahan nahi rahna hi bhala he...

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल सोमवार (23-09-2013) को "वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए.." (चर्चा मंचःअंक-1377) पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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