गुरुवार, 21 नवंबर 2013

कभी तो लिख दिया कर यहाँ छुट्टी पे जा रहा है

बटुऐ की चोर जेब में
भरे हुऐ चिल्लर जैसे
कुछ ना कुछ रोज लेकर
चने मूंगफली की
रेहड़ी लगाने में तुझे
पता नहीं क्यों इतना
मजा आता है
कितना कुछ है
लोगों के पास
भरी हुई जेबों में जब
पिस्ते काजू बादाम
दिखाने के लिये
किसे फुरसत है तेरी
मूंगफली के छिक्कल
निकाल कर दो चार दाने
ढूढ निकाल कर खाने की
एक दिन की बात नहीं है
बहुत दिनों से तेरा ये टंटा
यहाँ चला आ रहा है
करते चले जा तू
मदारी के करतब
खुद को खुद
का ही जमूरा
तुझे भी मालूम है
पता नहीं किस के लिये
यूं बनाये जा रहा है
कभी सांस भी
ले लिया कर
थोड़ी सी देर
के लिये ही सही
नहीं दिखायेगा
कभी कुछ तो
कौन यहाँ पर
लुटा या मरा
जा रहा है
कुछ नहीं
होगा कहीं पर
हर जगह खुदा का
कोई ना कोई बंदा
उसी के कहने पर
वो सब किये
जा रहा है
जिसे लेकर रोज
ही तू यहां पर
आ आ कर
टैंट लगा रहा है
आने जाने वालों का
दिमाग खा रहा है
अब भी सुधर जा
नहीं तो किसी दिन
कहने आ पहुंचेगा यहाँ
कि खुदा का कोई बंदा
तेरी इन हरकतों के लिये
खुदा के यहाँ आर टी आई
लगाने जा रहा है और
ऊपर वाला ही अब तेरी
वाट लगाने के लिये
नीचे किसी को
काम पर लगा रहा है ।

4 टिप्‍पणियां:


  1. सुन्दर सुन्दर भाव बद्ध रचना।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

    जवाब देंहटाएं