अंग्रेजी
में स्नेल
हिंदी का
होता है
घोंघा
या शँबुक
हमारे
यहाँ कह
दिया
जाता है
उसे एक
गनेल
मकर
संक्राति
के दिन
सुबह सुबह
मुनादि
घर वाली
की ओर
से कर
दी जाती है
जो बस यह
बताती है
आज के
दिन को
कहीं कहीं
नरहर भी
कह दिया
जाता है
आज के दिन
नहाना बहुत
ही जरूरी
माना जाता है
जो आज नहीं
नहा पाता है
अगले जन्म में
मनुष्य ही नहीं
बन पाता है
एक गनेल
हो जाता है
जो बहुत
ही धीरे धीरे
चलता है
कहीं भी नहीं
पहुँच पाता है
बुढ़ापा
आना
शुरु हो
चुका है
जब ये
महसूस
होने लग
जाता है
दो घंटे पहले
श्रीमती जी का
दिया आदेश
जब याद
ही नहीं
रह पाता है
किस्मत
का मारा
एक शौहर
खाने की
मेज में
बैठे हुऐ
परिवार को
खाना खाते
हुऐ देखकर
बिना नहाये ही
आज के दिन
खाना खाने
के लिये
बैठ जाता है
एक तो
काले कौओं
का त्योहार
उसपर एक
भी कौआ
कहीं भी
दूर दूर तक
नजर नहीं
आता है
होता भी
होगा कहीं
पर घर पर
बने हुऐ
पकवानों
को अब
खाने को
नहीं
आता है
जंगल
रहे नहीं
कव्वों
को सीमेंट
का जंगल
शायद
जगह जगह
उगा हुआ
पसंद भी
नहीं आता है
मेहनत से
पकाने
पड़ते हैं
बहुत सारे
पकवान
जिनको
माला में
एक पिरोया
जाता है
दूसरे दिन
मुँह अँधेरे
कौओ को
पुकारा
जाता है
कहना
होता है
“काले काले
घुघुती
माला खाले”
जो बचपन
की याद
बहुत
दिलाता है
आ जाते थे
उस समय
ढेरों कौए
कहाँ कहाँ से
इस जमाने
का कौआ
पता नहीं
कहाँ रह
जाता है
श्रीमती जी
करती हैं
बहुत सारी
मेहनत
त्योहार
मनाना बहुत
जरूरी हो
जाता है
ऐसे में
किसे नहीं
आयेगा क्रोध
अगर कोई
सौ बार
कह देने के
बाद भी
एक
शुद्ध दिन
नहा कर
ही नहीं
आ पाता है !
में स्नेल
हिंदी का
होता है
घोंघा
या शँबुक
हमारे
यहाँ कह
दिया
जाता है
उसे एक
गनेल
मकर
संक्राति
के दिन
सुबह सुबह
मुनादि
घर वाली
की ओर
से कर
दी जाती है
जो बस यह
बताती है
आज के
दिन को
कहीं कहीं
नरहर भी
कह दिया
जाता है
आज के दिन
नहाना बहुत
ही जरूरी
माना जाता है
जो आज नहीं
नहा पाता है
अगले जन्म में
मनुष्य ही नहीं
बन पाता है
एक गनेल
हो जाता है
जो बहुत
ही धीरे धीरे
चलता है
कहीं भी नहीं
पहुँच पाता है
बुढ़ापा
आना
शुरु हो
चुका है
जब ये
महसूस
होने लग
जाता है
दो घंटे पहले
श्रीमती जी का
दिया आदेश
जब याद
ही नहीं
रह पाता है
किस्मत
का मारा
एक शौहर
खाने की
मेज में
बैठे हुऐ
परिवार को
खाना खाते
हुऐ देखकर
बिना नहाये ही
आज के दिन
खाना खाने
के लिये
बैठ जाता है
एक तो
काले कौओं
का त्योहार
उसपर एक
भी कौआ
कहीं भी
दूर दूर तक
नजर नहीं
आता है
होता भी
होगा कहीं
पर घर पर
बने हुऐ
पकवानों
को अब
खाने को
नहीं
आता है
जंगल
रहे नहीं
कव्वों
को सीमेंट
का जंगल
शायद
जगह जगह
उगा हुआ
पसंद भी
नहीं आता है
मेहनत से
पकाने
पड़ते हैं
बहुत सारे
पकवान
जिनको
माला में
एक पिरोया
जाता है
दूसरे दिन
मुँह अँधेरे
कौओ को
पुकारा
जाता है
कहना
होता है
“काले काले
घुघुती
माला खाले”
जो बचपन
की याद
बहुत
दिलाता है
आ जाते थे
उस समय
ढेरों कौए
कहाँ कहाँ से
इस जमाने
का कौआ
पता नहीं
कहाँ रह
जाता है
श्रीमती जी
करती हैं
बहुत सारी
मेहनत
त्योहार
मनाना बहुत
जरूरी हो
जाता है
ऐसे में
किसे नहीं
आयेगा क्रोध
अगर कोई
सौ बार
कह देने के
बाद भी
एक
शुद्ध दिन
नहा कर
ही नहीं
आ पाता है !
आ० बढ़िया लेख , हम जैसे हि लोगों को दशा दिशा दिखता हुआ.......
जवाब देंहटाएं|| जय श्री हरिः ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (15-01-2014) को हरिश्चंद का पूत, किन्तु अनुभव का टोटा; चर्चा मंच 1493 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
मकर संक्रान्ति (उत्तरायणी) की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
बहुत बढ़िया लेख हास्य/व्यंग्य से भरपूर!!
जवाब देंहटाएंशुक्र है हमारे आसपास बहुत कौए हैं....जो रोज सुबह जीमने आ जाते हैं....
रोचक!
जवाब देंहटाएंवो भी सुबह सुबह नहाना होता है
जवाब देंहटाएंबिध बिधान से
नाख़ून काटो - मलेच्छ उतारो
एक दिन न हुआ - गंगा स्नान हुआ
अच्छी बात कही है आपने.. हम भी बचपन से यही सब सुनते आ रहे हैं!!
जवाब देंहटाएंइसका मतलब गनेल पहले जन्म में मनुष्य रहे थे इंट्रस्टिंग,:)
जवाब देंहटाएंरोचक लगी रचना !