बुधवार, 15 जनवरी 2014

मकर संक्रांति दूसरी किस्त में देखिये क्या क्या हुआ

जिस बात के होने
का अंदेशा था वही
और बस वही
होता हुआ दिखा
सुबह सुबह की छोड़िये
शाम तक भी कौऐ ने
मैं आ गया हूँ नहीं कहा
वैसे तो पता था
यही होना है
कौआ पिछले कई सालों से
कहाँ मिल पा रहा है
और जरूरी नहीं है
जो एक बार हुआ हो
वही कई कई बार
होना ही होना होता हो
पर्दा उठा हो
नाटक एक हुआ हो
जली हुई मोमबत्तियाँ
अपने हाथों में लेकर
एक लड़की के लिये
जैसे कभी शहर
पागल हो गया हो
सफेद टोपियाँ ही टोपियाँ
गली गली में हल्ला गुल्ला
चोर चोर की जगह
मोर मोर हो गया हो
पर्दा जब गिर गया हो
उसके बाद किसे
को पता नहीं चला हो
क्या क्या नहीं हो गया हो
जिंदा मीट के एक
सफेद पोश व्यापारी का
रंगे हाथों पकड़ा जाना
उसी छोटे से शहर के लिये
इस बार एक छोटी
सी खबर हो गया हो
शोर शराबा टोपी मोमबत्ती
का टाईम ठंडे बस्ते
में जा कर सो गया हो
इतना काफी नहीं है क्या
समझने के लिये
क्या पता कौआ भी अब
कौआ ही ना रह गया हो
एक मुर्गा या कबूतर
जैसा कुछ हो गया हो
ऐसा होना गिना जाता होगा
किसी जमाने में
अचम्भे जैसा होने में
अब कुछ भी कैसा भी
कहीं भी हो जाना
एक नार्मल बात हो गया हो
कौआ बहुत ज्यादा
समझदार हो गया हो
लोकल मुद्दों पर प्रतिक्रिया
नहीं देकर राष्ट्रीय धारा में
गोते लगाना सीख ही गया हो
इसलिये मकर संक्रांति को
आना उसने छोड़ ही दिया हो !


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