सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

हर शुभचिंतक अपने अन्दाज से पहचान बनाता है


कितना कुछ होता है अपने आस पास 
बिल्कुल भी एक जैसा नहीं 
एक ऐसा तो दूसरा वैसा 

लिखने की सोचो 
तब महसूस होता है कुछ अजब गजब सा 

क्या छोड़ो क्या उठाओ 
मदारी उठाओ जमूरा छूट जाता है 
जमूरे की सोचो मदारी अकेला पड़ने लग जाता है 

पर सोचिये जरा 
हर आदमी का ऐंगल 
दूसरे आदमी से कहीं छोटा तो कहीं बड़ा हो जाता है 

किस पर क्या लिखा जाये 
एक विषय सोचने तक कलकत्ता आ जाता है 

बस और देर की गई तो जैसे लिखा हुआ 
समुन्दर में डूब जाने के लिये तैयार हो जाता है 

इस से पहले कोई डूबे कहीं 
दिमाग की लेखनी का ढक्कन 
कहीं ना कहीं उलझ ही जाता है 

तो ऐसे ही होते होते 
आज अपने ही एक शुभचिंतक का खयाल आ जाता है 

ना समाचार पत्र पढ़ता है ना रेडियो सुनता है 
आँखों में बस गुलाबजल डालता है 
टी वी देखने के हजार नुकसान बता डालता है 

बस जब भी मिलता है 
उससे पूछने से नहीं रहा जाता है 

जैसे एक रोबोट 
कलाबाजियाँ कई एक साथ खाता है 

भाई क्या हाल और क्या चाल हैं 
फिर दूसरा वाक्य और कोई खबर 

सबके साथ यही करता है 

क्यों करता है 
हर कोई इसे भी एक शोध का विषय बनाता है 

उलूक दिन में नहीं देख पाता है 
तो क्या हुआ 
रात में चश्मा नहीं लगाता है 

उलूकिस्तान में 
इस तरह की बातों को समझना 
बहुत ही आसान माना जाता है 

समाचार पत्रों में जो भी समाचार दिया जाता है 
उससे अपने आस पास के गुरु घंटालो के बारे में 
कुछ भी पता नहीं लग पाता है 

अच्छी जाति का कोई भी कुत्ता 
विस्फोटक का पता सूंघ कर ही लगाता है 

इसीलिये हर शुभचिंतक 
चिंता को दूर करने के लिये 
खबरों को सूंघता हुआ पाया जाता है

मिलते ही आदतन 
क्या खबर है 
उसके मुँह से अनायास ही निकल जाता है ।

चित्र साभार: iStock

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (05-02-2014) को "रेखाचित्र और स्मृतियाँ" (चर्चा मंच-1514) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. एक साथ कई सारे पहलुओं पर तीक्ष्ण दृष्टि... बहुत बढ़िया. बधाई.

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  3. कोई भी कुत्ता
    विस्फोटक का पता
    सूंघ कर ही
    लगाता है
    इसी लिये हर
    शुभचिंतक
    चिंता को दूर
    करने के लिये
    खबरों को
    सूंघता हुआ
    पाया जाता है

    बिम्ब प्रधान सुन्दर रचना सशक्त अर्थ अन्विति भाव के साथ

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  4. सूंघता हुआ
    पाया जाता है
    मिलते ही
    आदतन
    क्या खबर है
    उसके मुँह से
    अनायास ही
    निकल जाता है !

    ........ तीक्ष्ण सशक्त रचना !!

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  5. उल्लूक दिन में
    नहीं देख पाता है
    तो क्या हुआ
    रात में चश्मा
    नहीं लगाता है,
    - यों तो सारी ही उक्तियाँ मार्के की हैं .

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  6. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 23 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  7. वाह हर बार की तरह लाजवाब।
    करारा व्यंग।
    बैठे बेगार भला हर भारतीय।

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  8. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 19 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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