शनिवार, 31 मई 2014

साथ होना अलग और कुछ होना अलग होता है

उसके
और मेरे बीच
कुछ नहीं था

ना उसने
कभी कहा था
ना मैंने कभी
कोशिश की थी
कुछ कहने की

अब 
आपस में
बात करने का
मतलब

कुछ
कहना होता है
ऐसा जरूरी भी
नहीं होता है

बहुत साल
आस पास
रह लेने से भी
कुछ नहीं होता है

साथ साथ
बड़ा होना
खेलना कूदना
घर आना जाना
कहीं घूमने
साथ चले जाना

एक रास्ते से
बहुत सालों तक
एक सी जगहों
को टटोलना

बहुत से लोग
करते हैं

रास्ते अलग
हो जाते हैं

लोग अलग
अलग दिशाओं
को चले जाते हैं

यादों
का क्या है
उनका काम भी
आना और जाना
ही होता है

वो भी आती
जाती रहती हैंं

कभी
किसी की
आ जाती है

कभी
किसी की
आ जाती है

कुछ देर के
लिये ही सही

बहुत से
लोगों के बीच
बहुत कुछ
होने से भी
क्या होता है

उससे भी
क्या होता है

अगर कोई
कभी

उसके
मेरे बीच
कभी भी
कुछ नहीं था

कह ही देता है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-06-2014) को "प्रखर और मुखर अभिव्यक्ति (चर्चा मंच 1630) पर भी है!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 25 मई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आज अपना उलूक एक निराश दार्शनिक प्रतीत हो रहा है. मुझे और कुछ नहीं कहना है. बस, सीधे-सीधे, साफ़-साफ़, एक ही सवाल पूछना है -
    'वह कौन थी?'

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