रविवार, 1 जून 2014

जैसा यहाँ होता है वहाँ कहाँ होता है

कभी कभी
बहुत अच्छा
होता है

जहाँ आपको
पहचानने वाला
कोई नहीं होता है

कुछ देर के
लिये ही सही
बहुत चैन होता है

कोई कहने सुनने
वाला भी नहीं
कोई चकचक
कोई बकबक नहीं

जो मन में
आये करो
कुछ सोचो
कुछ और
लिख दो

शब्दों को
उल्टा करो
सीधा कर
कहीं भी
लगा दो

किसे पता
चल रहा है कि
अंदर कहीं कुछ
और चल रहा है

कोई भी
किसी को
देख भी नहीं
रहा होता है

सच सच
सब कुछ सच
और साफ साफ
बता भी देने से
कोई मान जो
क्या लेता है

वैसे भी
हर जगह
का मौसम
अलग होता है

सब की अपनी
लड़ाईयाँ
सबके अपने
हथियार होते हैं

किसी के दुश्मन
किसी और के
यार होते है

पर जो भी
होता है
यहाँ बहुत
ईमानदारी
से होता है

बेईमानी कर
भी लो थोड़ा
बहुत कुछ अगर
तब भी किसी को
कुछ नहीं होता है

सबको जो भी
कहना होता है
अपने लिये
कहना होता है

अपना कहना
अपने लिये
उसी तरह से

जैसे
अपना खाना
अपना पीना
होता है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-06-2014) को ""स्नेह के ये सारे शब्द" (चर्चा मंच 1631) पर भी होगी!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. सचमुच ....
    सबको जो भी
    कहना होता है
    अपने लिये
    कहना होता है
    अपना कहना
    अपने लिये
    उसी तरह से
    जैसे अपना खाना
    अपना पीना
    होता है ।
    लाज़वाब अभिव्यक्ति ...

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  3. इस अकेलेपन का साथ कितना अच्छा होता है ... सब कुछ हो के भी अकेला ..

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  4. कल 03/जून /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  5. सचमुच ....
    सबको जो भी
    कहना होता है
    अपने लिये
    कहना होता है
    अपना कहना
    अपने लिये
    उसी तरह से

    लाज़वाब अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं