शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे


चल रहने दे सब जमीन की बातें
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे
लिखते लिखते घिस चुकी सोच
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे

ला लिखेगा जमा किया महीने भर का
जैसे एक दिन में कोई पूरा कूड़ेदान लिख दे
किसलिये करनी है इतनी मेहनत 
कौन कहता है तुझसे चल एक बियाबान लिख दे

सबको लिखना है सबको आता है लिखना 
तू अपना लिख पूरा इमतिहान लिख दे
किसने बूझना है लिखे को किसे समझना है 
आधा लिख चाहे पूरा दीवान लिख दे

होता रहा है होता रहेगा आना जाना यहां भी वहां भी 
रास्ते रास्ते निशान लिख दे
तू ना सही कोई और शायद कर ले कोशिश लौटने की फिर यहीं 
खाली उनवान लिख दे

आदत है तो है मगर ठीक नही है लिखना इस तरह से खीच कर 
पूरी लम्बी एक जुबान लिख दे
निकले कुछ तो मतलब कभी लिखे का तेरे ‘उलूक’ 
मत लिखा कर इस तरह कि दुकान लिख दे

चित्र साभार: https://www.indiamart.com/

19 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (2-10-22} को "गाँधी जी का देश"(चर्चा-अंक-4570) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  2. हमेशा की तरह सुन्दर सृजन । हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  3. मैं भी टिप्पणी कर ही देती हूं कि बहुत सुंदर लिखा।

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  4. लिखूँ या न लिखूँ, यह या वह लिखूँ, इसके बारे में या उसके बारे में लिखूँ, आपकी रचना में यह द्वंद्व कदम-कदम पर झलकता है , जब ऊपर वाले ने लिखने की सलाहियत दे ही दी है तो उसे काम में लाना ही बनता है

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  5. "तू ना सही कोई और शायद कर ले कोशिश लौटने की फिर यहीं
    खाली उनवान लिख दे"

    हमेशा की तरह शानदार!!

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  6. वाह! लिखने वाले का तो वितान ही लिख दिया है।

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  7. 'निकले कुछ तो मतलब कभी लिखे का तेरे ‘ - निकालनेवाले खींचतान कर मतलब निकाल लेंगे,तू लिख चाहे जो ....

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  8. निकले कुछ तो मतलब कभी लिखे का तेरे ‘उलूक’
    मत लिखा कर इस तरह कि दुकान लिख दे
    रोचकता लिए चिंतनपूर्ण रचना ।

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  9. तू ना सही कोई और शायद कर ले कोशिश लौटने की फिर यहीं
    खाली उनवान लिख दे

    इसलिए आप प्रतिदिन का लेखन करें
    सादर

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  10. सुन्दर रचना । दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ l

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  11. बहुत अच्छा ताल छंदयुक्त मतलब निकल रहा है इस लिखे का।

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  12. बढ़िया लिखा है आपने सुशील जी।दीवान भले कोई ना लिख पाये पर जिसके भीतर भावनाओं के प्रचंड आवेग उमड़ते हैं माँ सरस्वती उसे कभी ना कभी कलम थमा ही देती है।कहने को हमारे जैसे कथित रचनाकार भी साहित्य में कोई अहम भूमिका नहीं निभा रहे पर कलम को घसीट ही रहें हैं जैसे -तैसे 🙏

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