शनिवार, 4 मई 2024

‘उलूक’ लगा रहेगा आदतन बकवास करने यहाँ गोदी पर बैठे उधर सारे यार लिखेंगे

 
माहौल पर नहीं लिखेंगे कुछ भी
कुछ इधर की लिखेंगे कुछ उधर की लिखेंगे
वो कुछ अपनी लिखेंगे हम कुछ अपनी लिखेंगे
लिखेंगे और रोज कुछ लिखेंगे

धूप बहुत तेज है हो लू से मरे आदमी मरे
हम पेड़ पर लिखेंगे उसकी छाँव पर लिखेंगे
आंधी से उड़ गयी हो छतें गरीबों की रहने दें
हम ठंडी हवा लिखेंगे और गाँव लिखेंगे

कोई झूठ बोले बोलता रहे हम सच पर लिखेंगे
सच की वकालत पर लिखेंगे हम पड़ताल  लिखेंगे
मर रहे हैं लोग बीमारियों से मरें और मरते रहें
हम लिखे में अपने सारे हस्पताल लिखेंगे

तीन बंदरों की नयी बात लिखेंगे
गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे
तीन बंदरों को   खुद ही सुधार लेने को
उनकी औकात लिखेंगे उनकी जात लिखेंगे

लिखेंगे दिखेंगे पढेंगे
दो चार पांच को ले जाकर रोज सुबह
बेरोकटोक सूबेदार लिखेंगे
‘उलूक’ लगा रहेगा आदतन बकवास करने यहाँ
गोदी पर बैठे उधर सारे यार लिखेंगे
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

14 टिप्‍पणियां:

  1. तीन बंदरों की नयी बात लिखेंगे
    गांधी और नेहरू को पडी लात की सौगात लिखेंगे
    तीन बंदरों को खुद ही सुधार लेने को
    उनकी औकात लिखेंगे उनकी जात लिखेंगे

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  2. सुंदर व्यंग्य....
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 06 मई 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. साहिब ! .. गुस्ताख़ी माफ़ ...
    गाँधी और नेहरू ख़ुद ही लिख गए हैं, इतिहास के पन्नों पर ढेर सारे अपने-अपने साफ़-सुथरे कारनामें;
    समय और सोच हो तो कभी पटेल, बोस और सिंह को पड़ी लात व ज़बरन मात की भी बात लिखेंगे .. बस यूँ ही ...
    तीनों बन्दरों के आँख, मुँह और बन्द कानों के कारण मचे उत्पात से, अब चौथे बन्दर की तलाश करेंगे,
    अब इस पुरुष प्रधान समाज वाली सोच से इतर बन्दर के साथ एक बन्दरिया की भी मिलकर हम तलाश करेंगे .. बस यूँ ही ...
    (भला कब तक हम तीनों बन्दरों में ही उलझे रहेंगे 🤔)

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  4. जो लिखना है वो नहीं लिखेंगे. जो कहना है वो नहीं कहेंगे.
    नब्ज़ पर हाथ रख दिया लेकिन रोग का निदान क्या पा सकेंगे ?

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  5. अब बुरा देखने, बुरा सुनने, बुरा बोलने वालों का ही दौर चला है....

    बढ़िया रचना

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  6. आंखें बंद कर के सारे हालात लिखेंगे ..तीक्ष्ण व्यंग्य

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  7. सही बात सही हालात लिखने के लिए सबसे पहले उलूक दृष्टि चाहिए जो फैलाए अंधेरे में भी सच को साफ देख सकें । वरना सच को नजरअंदाज कर बस कल्पनाओं में खोए तूफानों को ठंडी बयार ही लिख पायेंगे ।
    आंधी से उड़ गयी हो छतें गरीबों की रहने दें
    हम ठंडी हवा लिखेंगे और गाँव लिखेंगे
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब सृजन।

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  8. चाहे इधर उधर लिख तो रहे हैं ... लाइन पर भी आ जाएँगे ...

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