उलूक टाइम्स

"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा " :- शौक़ बहराइची

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रविवार, 5 नवंबर 2017

अन्दाज नहीं आ पाता है हो जाता है कब्ज दिमागी समझ में देर से आ पाता है पर आ जाता है

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कई दिनों तक एक रोज लिखने वाला अपनी कलम और किताब को रोज देखता है रोज छूता है बस लिखता कुछ भी नहीं है लिखने की सोचने तक नींद के आगोश में चल...
सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

हर शुभचिंतक अपने अन्दाज से पहचान बनाता है

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कितना कुछ होता है अपने आस पास  बिल्कुल भी एक जैसा नहीं  एक ऐसा तो दूसरा वैसा  लिखने की सोचो  तब महसूस होता है कुछ अजब गजब सा  क्या छोड़ो क्य...
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सुशील कुमार जोशी
Almora, Uttarakhand, India
ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ ।
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